कविताअतुकांत कविता
कव्वाली-त्यौहारों की
भारत भूमि सबसे न्यारी
त्यौहारों की है फुलवारी
मेरे भाई सुनो,मेरी बहना सुनो
त्यौहारों की कुछ बात सुनो
ये मकर संक्रांति आती है
उत्तरायण सूरज होता है
तिल तिल गर्मी बढ़ जाती
दिन देवों का यह होता है
बसंत पंचमी है जब आती
बासंती बहारें हैं छा जाती
माते शारदा पूजी जाती है
विद्या की देवी कहलाती
विषय विकार पीकर के
शिव ज्योतिर्मय ज्ञान दे
अमृत बूंदे विश्व पाता है
शिवरात्रि मनाई जाती है
होलिका दहन करके हम
विकारों का नाश करते हैं
रंग प्यार के हम बरसाते
शांति सद्भाव फैलाते हैं
हनुमान जयंती मनाते हैं
बल शक्ति का वर पाते हैं
नासे रोग हरे हैं सब पीड़ा
जो सुमरे हनुमत बलबीरा
सावन में झूले बन्धते हैं
उत्सव राखी का आता है
बहनों की रक्षा के ख़ातिर
भाई ढेरों प्यार लुटाता है
बुद्धिदाता हैं श्री गजानन
दूरदर्शी शांत व उदारमन
रिद्धि सिद्धि के दायक हैं
संकटमोचक कहलाते हैं
श्रद्धा से श्राद्ध करते हैं
पितरों का मान बढ़ाते हैं
जो हमारे हैं जीवनदाता
अपना ये फ़र्ज निभाते हैं
नवरात्रि में नव देवियों की
प्रतीक हैं नौ शक्तियों की
सुख-सेहत की करे इच्छा
परंपराएं हम यूँ निभाते हैं
दशानन दहन भी करते हैं
राम विजय जश्न मनाते हैं
बुराइयों को जला करके
ये परचम हम फ़हराते हैं
दीपोत्सव ज्योति देता है
अज्ञान अँधेरा मिटाते हैं
सफ़ाई सजावट के द्वारा
उत्साह उमंग यूँ बढ़ाते हैं
सरला मेहता