कहानीलघुकथा
बीच का दरवाजा
राखी जी के छोटे से फ्लेट के बगल में उनकी सखी वीणा पति विवेक के साथ रहती हैं। "आंटी आंटी ! आज आपने क्या बनाया है ?" वीणा का बेटा विभु आकर पूछता है।" तुम्हारी पसन्द के छोले भटूरे।" राखी प्यार से बताती है। यह रोज़ का ही सिलसिला हैं।
दोनों परिवार सुख दुख के साथी हैं। राखी यूँ भी अविवाहित है।
लेकिन होनी को कौन टाल सकता है। वीणा ह्रदयाघात के कारण स्वर्ग सिधार जाती है। ऐसे में5 राखी पड़ोसी धर्म बख़ूबी निभाती है। क्रियाकर्म के पश्चात सारे रिश्तेदार चले जाते हैं। बिल्डिंग वाले सब लोग विवेक को धीरज बंधाते हैं। उदास विभु को आंटी अपने पास सुलाती है। अब देखा जाए तो दोनों परिवारों का दायित्व राखी के कांधों पर ही है।
अवसर देख बिल्डिंग के कुछ बुजुर्ग विवेक व राखी को सलाह देते हैं। मासूम विभु के खातिर ही वे एक नया जीवन आरम्भ करे। वैसे भी दोनों सखियों ने फ्लैट्स के बीच एक दरवाज़ा बनवाया था। और विभु ने वह दरवाज़ा हमेशा के लिए खोल दिया।
सरला मेहता