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सफ़र ए दास्तान - Usha Bhadauria (Sahitya Arpan)

कहानीसंस्मरण

सफ़र ए दास्तान

  • 502
  • 13 Min Read

सफ़र ए दास्तान

जून की बात है।कोविड -19 का प्रकोप अपने शिखर पर था।सबकी तरह हम सब भी काफ़ी डरे हुए थे। जब एक बहुत ज़रूरी कार्य की वजह से जाना ज़रूरी ही हो गया तो एक योद्धा की तरह हमने अपने आपको तैयार कर ही लिया ।
तयशुदा दिन पर , तैयार हुए …तैयार होने के लिए कुछ बचा ही क्या था !! पूरा तो मुँह ढकना ही था तो बस कपड़े जो धुलने के लिए पड़े थे उन्हीं में से एक जींस और टॉप पहन लिया ।
मास्क , फ़ेस शील्ड,ग्लव्ज़, ग्लैसेज़ और जैकेट पहन अब हम तैयार थे युद्द पर जाने को । अब इतना तामझाम किया था तो एक सेल्फ़ी तो बनती थी तो हज़्बंड को बोला , “ सुनिए एक पिक ले लीजिए ना!” उनके फ़ेस इक्स्प्रेशन को देखते हुए हमने अपना काम ख़ुद ही करने में भलाई समझी ।
ख़ैर , ख़ूब सारी हिदायतों के साथ , हमें विदा किया गया। स्टेशन तक का सफ़र बहुत फ़्रेश था। काफ़ी दिनों बाद जो बाहर निकले थे और सुनसान सी सड़के मुस्करा कर स्वागत कर रही थी। पर स्टेशन पर पहुँचते ही हॉर्ट्बीट्स बढ़ गयी ।
“पब्लिक ट्रांसपोर्ट बहुत रिस्की हैं इस समय…” ये बात पता नहीं कौन कानों में फूँक रहा था।
स्टेशन , बिल्कुल ख़ाली सा था । इक्का दुक्का लोग दूरी पर दिखे तो सुकून सा लगा । ट्रेन आते ही , हमने ख़ाली डब्बा देखकर चढ़ गये । डब्बे में पीछे पीछे एक और आ गया । ग़ुस्सा तो इतना आया पर पब्लिक ट्रांसपोर्ट पर कैसे अपना अधिकार दिखाते । ख़ैर वह दूर बैठ गया ।
आज पहली बार ऐसा था जब एक रानी की तरह ट्रेन में अकेले सवारी कर रहे थे। ख़ाली देख अब हमने अपना मास्क उतार दिया क्यूँकि पहली बार मास्क पहनने की वजह से अब दम घुटने सा लगा था।
अभी थोड़ा रिलैक्स होकर , पैरों को स्ट्रेच कर ,घर पर कुशलता के मेसेज कर, बस थोड़ा फ़ेस्बुक के पोस्ट्स , कोम्मेंट्स कर ही पाए थे कि अगले स्टेशन पर ट्रेन रुकी । लोगों को देखते ही मन ही मन भगवान से प्रार्थना शुरू कर दी …”प्लीज़ यहाँ कोई ना आए !!” पर , सारे अडवेंचर तो मेरे ही साथ होने थे ना।
एक आदमी हमारे ही डब्बे में चढ़ गया । कोई सिरफिरा सा था जिसे अपनी जान की परवाह नहीं थी .. बिना मास्क आदि के बिल्कुल सामने आकर बैठ गया ।मेरा हाथ सीधे अपने मास्क की तरफ़ गया ।
उसके बैठना और मेरा मास्क लगाना एक साथ हुआ । कोई और समय होता तो यह थोड़ा अशिष्ट सा लगता पर मरता क्या ना करता ।
“प्लीज़ , बुरा मत मानिएगा, क्या आप थोड़ा दूर बैठ सकते हैं ।”
दो मीटर दूरी बना कर बैठने वाले पोस्टर की तरफ़ इशारा करते हुए हमने कहा।
उसके लिए शायद नया नहीं था । उठ गया। पर अपने अशिष्ट व्यवहार पर हमें शर्म आ रही थी।
एनीवे , मास्क का एक फ़ायदा है फ़ेस इक्स्प्रेशन नहीं दिखते!!
बिना इधर उधर देखे हमने अपना मोबाइल फिर निकाल फिर स्क्रोलिंग शुरू कर दी ।
कोविड सफ़र में यूँ तो अब हर रोज़ उस दिन की तरह है पर एक योद्धा की तरह किया गया यह सफ़र, हमेशा यादगार रहेगा।

ऊषा भदौरिया

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Ankita Bhargava

Ankita Bhargava 4 years ago

मजेदार

Usha Bhadauria4 years ago

Thanks Ankita जी

दादी की परी
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