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एक रोटी और ले लो - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

एक रोटी और ले लो

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एक रोटी और ले लो
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सुमि रोटी बना रही थी उसने सबको आवाज दी चलो खाना बन गया । घर के सब सदस्य टेबिल पर आगये । लंच का समय था । आज रविवार था । सब साथ बैठ कर खा रहे थे । सम्मिलित परिवार की बात ही कुछ और होती है पर बन्दिशे भी होती हैं। सुमि की शादी को कुछ ही समय बीता था । घर में जेठानी ,सास,ननद सभी तो थे ,फिर भी कभी कभी अकेला पन उसे घेर लेता था ।
सब खाना खा चुके थे बह और उसकी जेठानी खाना खाने बैठी ,पर वह अतीत की यादों में खो गयी । उसके कालेज की छुट्टी दोपहर को 12.30 पर होती थी उस समय चूल्हे पर रोटी बनती थी । उसकी भाभी जो उसकी मां की तरह थी । उम्र में उससे बहुत बड़ी थी । वह उसका इन्तजार करती थी कि वह घर आये और गर्म गर्म रोटियां खिलाये । वह भी बिलकुल चूल्हे के पास बैठ कर कालिज की सारी शैतानियां सुनाते सुनाते खाना
खाती थी । पता ना कब बड़ी होगयी । आकर भाभी से लिपट कर रोने लगी मां से डर लगता था । भाभी भी परेशान कि ऐसी क्या बात हो गयी । बहुत प्यार से पूछा क्या टीचर ने डांटा उसने कहा नहीं ,किसी लड़के ने कुछ कहा उसने फिर सर हिला दिया । अब भाभी भी परेशान जब उसने कहा कि उसके सारे कपड़े पता ना कैसे गन्दे हो गये सब उसका मजाक उड़ा रहे थे । उसकी सहेली जो बराबर रहती थी उसके घर जाकर बदल कर आई है । भाभी ने बड़े प्यार से समझाया कि अब तुम बड़ी हो रही हो और ये सब लड़कियों के साथ होता है । सारी बातें को जो आज टीवी के माध्यम से छोटी उम्र की लड़कियां भी जानती हैं, पर भटक भी जाती हैं । वह मेरी बहुत हितेषी और मार्ग दर्शक थी साथ ही मेरी मित्र भी । पर नियति को कुछ और ही मंजूर था । उनको एक गंभीर बीमारी ने घेर लिया और वह सबको रोता बिलखता छोड़ कर चली गयी पर नहीं गयी तो एक याद । मै जब भी दोपहर का खाना खाने बैठती हूँ तो सोचती कोई मुझसे कहे अरे बस दो ही " एक गर्म रोटी और लेलो " पर ये शायद कभी कोई कहने वाला नहीं आयेगा ।
स्व रचित
डा.मधु आंधीवाल एड.

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दादी की परी
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