कहानीलघुकथा
लघुकथा
शीर्षक- रिश्ते बनाम् रिश्ते
एक छोटे से फ्लैट में पति-पत्नी आपस में वार्तालाप कर रहे थे। पत्नी बोली- मां को अब वृद्धाश्रम में भेज दिया जाये,एक जो हालनुमा कमरा है न! उसमें मां बैठी रहती हैं, तो मेरी सहेलियाँ आना नहीं चाहती हैं। फिर दोनों बच्चों को भी पढ़ने-लिखने में परेशानी हो रहीं हैं। उनका छोटा बेटा वही पर घूम रहा था,वह तुरंत बोला-नहीं ऐसी कोई बात नहीं हैं।हमारी दादी तो भैया का और मेरा होमवर्क भी करा देती हैं.. पति बेचारा चुपचाप दोनों की बातें सुन रहा था और बेटे की सोच पर खुशी से फूले नहीं समा रहा था कि कम से कम मेरी मां ने मेरे बेटों को सही शिक्षा और संस्कार सिखाए हैं।
सुबह दोनों भाई आपस में बातें कर रहे थे...
छोटा बोला-भैया रात में मम्मी ने दादी को वृद्धाश्रम भेजने को पापा से बोल रही थीं.. तो क्या हमलोग बड़े हो जायेंगे तो ..मम्मी को भी वही भेज देंगे..
इसबार बड़ा भाई समझाते हुए बोला-नहीं मेरे भाई! कोई भी वृद्धाश्रम नहीं जायेगा, हमलोग ऐसा नहीं होने देंगे। न दादी जायेगी न भविष्य में हमारी मम्मी जायेगी...हमारे पापा देखते हो,दादी को कितना प्यार करते हैं।दादी भी तो हमसब पर जान न्यौछावर करती हैं। पापा कभी सहमत होंगे ही नहीं, और पापा गलती से तैयार भी हो गयें तो हम भी दादी के साथ ही चले जायेंगे।
इसबार मम्मी जो उन दोनों की बातें सुन रही थी.. दौड़कर दोनों बच्चों से लिपट गई और बोली सच बेटा ...तेरी दादी ने जो शिक्षा और संस्कार दिए हैं ,वह मेरे लिये वरदान हैं.. .. मैं ही बहक गई थी..और रिश्ते की अहमियत ,घर के बुजुर्ग की पहचान को,अपने माता-पिता द्वारा दिये संस्कार को भूल रही थी....अब दोनों बच्चे अपनी मम्मी को विस्मित नेत्रों से देख रहें ...थे ।।
संजय श्रीवास्तव
मौलिक व स्वरचित
पटना(बिहार)