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लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

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लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस

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लुप्त होती सामान्य लोगों की न्याय की आस
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महाराष्ट्र सरकार भी इस मामले को लेकर इतना आक्रामक इसलिए हुई है क्योंकि अर्नब गोस्वामी से बदला लेना है | वरना इतने दिन में किस सरकार ने सामान्य व्यक्ति का दु:ख दर्द समझा है ? बड़ों की लड़ाई में केवल छोटे मोहरे बन जाते हैं | अर्नब गोस्वामी भी गिरफ्तारी के दौरान मारपीट की बात कर रहे हैं पर आरोप पर कुछ बोल नहीं रहे ,जो उनके सच होने पर संदेह खड़ा कर रहा है | उन्हें उसपर अपनी सफाई देनी चाहिए | मुझे अभी भी आशा नहीं है कि सच सामने आ पाएगा और पीड़ित परिवार को न्याय मिल पाएगा | राजनीतिक लोग अपना हित सिद्ध करके चुपचाप बैठ जाएंगे | आपने देखा है कि कितने लोग आए कंपनियाँ खोलीं ,पब्लिक से डिपॉजिट लिए और गायब हो गए ,कुछ अभी भी चल रहे हैं पर पब्लिक के पैसे लौटा नहीं रहे |
कितने एजेंट और इसमें पैसा जमा करनेवालों ने आत्महत्या कर ली | किस पर कारवायी हुई किसी भी सरकार के द्वारा ,किसके पैसे लौटाए गए | ये उन कंपनियों का हाल है जिसे सरकार ही लाइसेंस देती है | सामान्य लोगों की आवाज कौन उठाता है ? शायद हम सब सामान्य लोग भी नहीं | हमलोग बड़े लोगों की भक्ति और उनके द्वारा दिए गए नारों और विचारों के इर्द गिर्द घूमते रह जाते हैं | हमारी पहचान अपने स्वयं के विचारों से नहीं बल्कि दक्षिणपंथी,वामपंथी तथा इसी प्रकार के अन्य विचारों को माननेवाले के रूप में होती है |
और आपस में हम लड़ते रहते हैं | इस विचारधारा ने हमें दीवारों में कैद कर लिया है जो सम्प्रदाय की तरह है | सामान्य व्यक्तियों को न्याय मिल पाएगा इसकी उम्मीद मुझे तो नहीं |

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