Or
Create Account l Forgot Password?
कविताअतुकांत कविता
चांद को देखो कितना इतराता है, कभी बकरों की शामत आती है, कभी पतियों पर प्यार लुटाता है, कभी आधा कटता है, कभी थोड़ा बढ़ता है, कभी पूरा हो जाता है , इतना होने पर कभी, खुद संकट में आजाता है, फिर भी सबके मन को भाता है.