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मनभावन चांद - Madhu Andhiwal (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

मनभावन चांद

  • 203
  • 2 Min Read

चांद को देखो कितना इतराता है,
कभी बकरों की शामत आती है,
कभी पतियों पर प्यार लुटाता है,
कभी आधा कटता है,
कभी थोड़ा बढ़ता है,
कभी पूरा हो जाता है ,
इतना होने पर कभी,
खुद संकट में आजाता है,
फिर भी सबके मन को भाता है.

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