कवितालयबद्ध कविता
ऐ चांँद तेरी क्या बात है....
रखकर चलनी में दीया!
देखती है, तुझे हर सुहागिन....
फिर अपने पति की लंबी
उम्र की कामना करती है सुहागिन....
सँज-सँवर कर दिनभर निर्जल
उपवास रखती है सुहागिन....
रात के अंधेरे में चाँद तुझ जैसे
आभा का वरदान माँगती है सुहागिन....
हाथों में मेहंदी लगाकर फिर से
नई नवेली दुल्हन! बन जाती है सुहागिन....
"नारी भी अजीब है ना....?"
कभी चाँद! तो कभी सूरज से!
अपने परिवार की खुशहाली माँगती है....
और लोग कहते हैं नारी को समझना मुश्किल है....
हाँ! नारी को समझना मुश्किल है....
@चम्पा यादव
4/11/20