कविताअतुकांत कविता
अल्हड़ ग्राम बाला
हाथ में ले वो हंसिया
दिखाती हुई दन्तपंक्तियाँ
मुस्काती खिलखिलाती
भूलकर ज्यों सारी दुनिया
एक अकेली,वो खेत में खड़ी
लागे है वो बड़ी अलबेली
ना साथ ना कोई हमजोली
लागे है मुझे नई नवेली
श्यामली सी महकती कली
एक अकेली,वो खेत में खड़ी
शब्दावलि से अनजान
ना अर्थ से उसकी पहचान
मीरा राधा सी हो मगन
गा रही है मधुर गान
एक अकेली,वो खेत में खड़ी
गुंजित हैं स्वर लहरियां
गदगद हो रही हैं वादियाँ
ये कैसी है मनमोहनिया ?
याद आ रही पी की सूरतिया
एक अकेली,खेत में खड़ी
दूर देस से आया सन्देसवा?
पुलकित रोम रोम बदनवा
चलूँ तैयार करूँ खेतवा
पी संग फिर बोऊँगी गेहूंवा
एक अकेली,खेत में खड़ी
दिला रही याद मुझे उस
सॉलॉटरी रीपर की,,,,,,,
सरला मेहता