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लघुकाथा - Maniben Dwivedi (Sahitya Arpan)

कहानीसामाजिकलघुकथा

लघुकाथा

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लघुकथा

स्वार्थ----
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बृद्धाश्रम में बेटा निर्भय को देख माँ वसुंधरा की आँखे छलछला आयी!
''इतने दिन हो गए बेटा तुम्हे आज मेरी याद आयी'' ....माँ ने शिकायत भरे लहज़े में बेटे से कहा!
नहीं माँ ऐसा नहीं है'' तुम तो जानती हो न मैं कितना व्यस्त रहता हूँ! ''तुम्हे कैसे भूल सकता माँ''?
नमन कैसा है बेटा? अब उसे कहानियां कौन सुनाता है?
नन्ही वो तो बहुत सयानी है! अपना सब काम फटाफट कर लेती है,और स्कूल भी चली जाती है! जैसे बसुंधरा सब कुछ जान लेना चाहती हो। हाँ माँ...
और मीना की माँ अब कैसी है बेटा? बेचारी बहुत बीमार थी इलाज़ के लिए उतने पैसे कहाँ से लाती?
माँ सभी ठीक है तुम्हे बहुत याद करते है!
''सच बेटा? अचानक वसुंधरा की आँखों से अश्रुधाराएँ बहने लगी
चलो माँ मैं तुम्हे लेने आया हूँ। सहसा माँ को यकीं नहीं हुआ। ''हाँ माँ''।
मैं कहती थी न कि नेहा अकेले कैसे संभालेगी इतनी जिम्मेदारियां?वो तो मैं थी जो बच्चों के पसंद का हर वक़्त ख़याल रखती थी!
''माँ नेहा ही बोली है माँ को ले आइये''।
अचानक यादों का एक बादल उड़ता हुआ मन के आंगन पर छा गया।
''यार नेहा तेरी सास तो बड़े ही काम की है'' !
जब भी हम लोग आतें हैं तरह तरह के पकवानों से मन भर देतीं है!
क्या टेस्ट होता है उनकी पकवानों में ? मज़ा आ जाता है.
काश मेरी सास भी इतनी हुनर वाली होती?यार नेहा बड़ी नसीब वाली है तूँ
अरे सरला तुम क्या जानो? बनाती इसलिए है कि खुद भी महारानी को चटपटे और ज़ायकेदार खाने की आदत है!' जीभ की बड़ी चटोर है!''
एक संयुक्त हंसी का आवाज़ टकराया कानो से जैसे पिघलता सीसा उड़ेल दिया हो किसी ने!और कुछ दिनों बाद ही बृद्धाश्रम में छोड़ आये थे दोनों वसुंधरा को!
''चलो माँ'' कहाँ खो गयी?
फिर भी वसुंधरा बहुत खुश थी घर वापस जाने के नाम पर!
अपनी सभी सहेलियों से विदा ले वसुंधरा घर के लिए चल पड़ी!
अरे ये क्या हुआ बहु? ये कैसे हुआ?
माफ़ कर दीजिये माँ जी एक एक्सीडेंट में मेरे दोनों पैर टूट चुके है। सालो लगेंगे खड़ा होने में।
वसुंधरा को बेटे बहु की स्वार्थ भरी साज़िश समझते देर ना लगी!
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@ मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी ( उत्तर प्रदेश )

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दादी की परी
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