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अरविंद गोस्वामी व्यापारियों में सोलवीं सदी का जाना माना नाम मुझे हर एक चीज जो व्यापार से जुड़ी है उससे प्रेम था बहुत मेहनत कर मैंने इस व्यापार को बढ़ाया अनाजों का व्यापार बहुत ही लाभदायक है, परंतु हिसाब रखने हेतु मुझ पर कोई भरोसेमंद सहायक नहीं था कुछ दिन पहले ही मेरी पत्नी का किसी रामेश्वरम द्वारा दुष्कर्म हुआ मुझे यह खबर नहीं थी पर मेरी पत्नी ने आत्महत्या कर ली मेरे अंदर उसे जान से मारने की भावना प्रकट थी परंतु वह बहुत बलशाली था फिर भी मैं उसे अपने हाथों से मारना चाहता था एक दिन मेरे पास एक रिश्ता आया पुजारिन का, पहले मैंने मना किया पंडित जी ने कहा देख आने में क्या हो जाएगा मैं चला गया उस लड़की का नाम था देवांगीनी उसने बताया कि कैसे रामेश्वरम नाम के व्यक्ति ने उसके साथ दुष्कर्म अंजाम दिया मैं चौका और घर वापस आया वहां कन्या बहुत ज्ञानी थी और पीड़ित भी और यहां रामेश्वर से जुड़ी हुई थी देवान्गिनी ने बताया कि रामेश्वरम मुझे पसंद करने लगा है और उसे पाने के चक्कर में खुद में बदलाव ला रहा है, इस मौके पर मुझे पीछे नहीं हटना था मैंने तुरंत पंडित से विवाह जल्दी से जल्दी करने का समय निकलवा लिया रामेश्वरम को तड़पा तड़पा के ही मारूंगा एक जरिया होगी और देवान्गिनी और मेरा हाथ भी व्यापर में बढ़ा देगी और ऐसा ही हुआ हमारे विवाह के बाद रामेश्वरम भागा फिरता पागल जैसी स्थिति कर बैठा था मेरे मन को शांति मिल रही थी अचानक एक दिन रामेश्वरम मेरे पास आकर प्रेम संबंधी बातें करने लगा तब मुझे सुकून मिला रहा था उसकी बातों से ध्यान हटा ही नहीं और उसने मेरे पेट में चाकू घुसा दिया उसने कहा खत्म होगा यह सिलसिला परंतु मैं खुश था दूसरे के साथ खिलवाड़ करने वाला आज खुद खिलवाड़ हो गया है.
मेरा दूसरा जन्म भी व्यापारी के घर हुआ मेरा नाम वैभव रहा मेरे पिता जी ने मछलियों का व्यापार किया था इस व्यापार में व्यय के लिए हमने लक्ष्मी ट्रेडर्स कि मालकिन लक्ष्मी से सौदा किया मुझे लक्ष्मी बहुत अच्छी लगती थी लक्ष्मी का व्यापार करने का तरीका बहुत अलग था वह मेरी भावनाओं को जानती थी परंतु उसने कहा था कि तुम मुझे पसंद नहीं व्यापार मात्र ही तुम जानकार हो अच्छा होगा यहाँ सम्बन्ध व्यापार तक ही रहे मैं लक्ष्मी में ही खोया था कि पता चला हमारा व्यापार बर्बाद हो चूका है जो मछलिय हम बाजार में बेचते थे उनमे जेहर पाया गया है मैं जनता था इसके पीछे बलराम है क्यूंकि जब हमने उसके साथ सौदा नहीं किया तो वो थोडा गुस्से से चला गया था परंतु मेरे पास कोई सबूत नहीं था
जैसे तैसे मैंने कपड़ों का छोटा व्यापार करा परंतु मैं कर्ज में डूबता जा रहा था कुछ सालों में ही आर्थिक रूप से कमजोर हो चला मैंने सोचा क्यों ना लक्ष्मी के पास जाकर मदद मांगी जाए उसके पास पहुंचा तो पता चला उसे धोखा दिया बलराम ने, मैंने बलराम के बारे में बताया कि वहां कितने लोगों का व्यापार हड़प कर बैठा है यदि तुम हमारे साथ रहने के लिए हां कर देती तो शायद भविष्य यहां नहीं होता मैं उसे इतना बोल कर चला गया मैं अपने कर्ज से छुटकारा पाने के लिए बलराम के पास गया उसने मना कर दिया परंतु उसने सौदा किया उसने कहा कि गांव के मंदिर में मैंने सोने के विष्णु की मूर्ति के लिए हां कर दी है और वहां सोने की मूर्ति एक हफ्ते बाद मंदिर में आएगी तुम्हें करना यह है कि मंदिर में आने से पहले मूर्ति को बदलना है और सोने के रूप में डलवा कर मुझे वापस देना है, मैंने कहा परंतु आप ही ने तो इसे बनवाया है तो बलराम ने कहा इतनी कीमती चीज को मूर्ति रूप में नहीं डलवा सकते हैं,यह सोना तो तिजोरी में ही बेहतर लगेगा
तुम चोरी इस हिसाब से करोगे कि वहां दूसरी नकली मूर्ति रखी जा सके उसके बाद तुम्हारा सारा कर्ज मैं पूरा करके दूंगा,
मैंने यहां किया जहां मूर्ति निर्माण हो रहा था मैं वहां गया उसकी जगह पर दूसरी मूर्ति ले गया जब मूर्ति मंदिर के लिए आ रही थी तब मैंने मौका देख मूर्ति बदलकर विष्णु की सोने की मूर्ति लेकर भागा परंतु मुझे लोगों ने देख लिया मैं घबराता हुआ बलराम के घर में प्रवेश कर चुका था अचानक घर से ही आवाज आयी चोर चोर तभी एक व्यक्ति मेरी तरफ आया मुझे कुछ समझ नहीं आया और मैंने उसे तीन चार बार मूर्ति से हमला कर दिया मुझे नहीं पता वह व्यक्ति कौन था शायद बलराम ही रहा हो मैं डरा था काशी पहुंचते मैंने मूर्ति को गंगा में बहा दिया वहां से चला गया वापस आया तो पता चला बलराम को किसी ने मार दिया है मैं डरा हुआ था मैं कुछ समझ नहीं पाया मैं उसी गंगा में वापस गया जाते समय बलराम के तिजोरी से कुछ जेवर और धन भी उठा लिया था मैं अब उस गाँव से दूर निकल रहने लगा मैंने एक शिल्पकार कि पुत्री से विवाह किया उसका नाम समीक्षा था उसके पास सम्पति बहुत थी समीक्षा ने बताया कि उनकी दादी के पास बहुत ही सम्पति थी मेरे पिता जी बताते है कि वह किसी व्यापारी कि कन्या थी मैंने कहा उनका नाम क्या था ? समीक्षा ने कहा जयरानी, मेरा दूसरा जीवन सुखद था पर अधूरा लक्ष्मी की याद धुंधली ही सही परन्तु आज भी वो पल याद आ जाते है जब साथ में व्यापार के बारे में बातें किया करते थे उसे पाने कि चाह मान में थी और बस मन में ही रही ................
मेरा तीसरा जन्म एक कुलीन परिवार के घर हुआ २००२ मेरा चोथा जन्मदिन आने वाला है........................?>???