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उड़ान - VIRENDER 'VEER' MEHTA (Sahitya Arpan)

कहानीलघुकथा

उड़ान

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#उड़ान

अपनी पहचान बनाने की चाहत में एक छोटे से दायरे से खुले आसमान में आकर जल्दी ही उसके पंखों ने उड़ान भरना सीख लिया था मगर साथी पक्षियों में ही छिपे बाज को पहचानने में धोखा खा गयी थी वह।

'आई सी यु' में पड़ी अधखुली आँखें माँ की ओर देख, बोल रही थी। "माँ! तुम ठीक कहती थी। ऊँची उड़ान के लिये पंखों की परवाज ही नहीं, बहती हवा के बदलते रूख को देखना और उससे ख़ुद को बचाना भी आना चाहिये।”
// वीर //

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नेहा शर्मा

नेहा शर्मा 3 years ago

बहुत खूब कम शब्दों में बेहतरीन अभिव्यक्ति।

दादी की परी
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