कविताअन्य
सप्ताहिक कार्यक्रम,साहित्य उत्थान
विषय- विधा
काव्य वृद्धजन के सम्मान पर
दिनांक-27/10/20
रानी सिंह
खड़गपुर(प.बंगाल)|
वृद्ध जीवन
नव विवाह दंपत्ती का हुआ स्वागत
किया गृहप्रवेश हाथों में हाथ लिए|
लेकर बड़ों का आशीश चल पड़े,बसाने नया संसार|
कुछ वर्षों में हुआ जन्म लला का
बने माता-पिता नटखट लला का|
खुश थे दोनो इतने, होत देख अपना पूरा परिवार|
वृद्ध हुए दोनों अब,लला हुआ युवा जब|
हुई शिक्षा पूरी जब, करने लगा चाकरी तब|
पहन सहरा लेकर बारात,लाया सुंदर बहु साथ|
कुछ दिनों में हुआ अब नया ऐसा,खटकने लगे माता-पिता अब|
देता साथ बेटा भी पत्नी का जब,
अश्रु से भर जाते माँ के नयन तब|
रोज होते खिटपिट-खिटपिट,वृद्ध पिता हुए रोग से ग्रस्त|
छोड़ गये अब सबको ये,रह गई वृद्ध माँ अकेलीअब|
पुत्र-वधु की ताने प्रतिदिन सुन,किसी तरह कट जाती जिंदगी अब|
एक दिन बेटा गया प्यार से माँ के पास,
हाथ फैलाये खड़ा माँ के समक्ष
चिकनी-चुपढी बातें करके , लिया माँ से सारे पैसे |
कहकर ये करना है कुछ व्यापार|
माँ तो थी भोली-भाली, कर गई सारा धन बेटे के नाम|
बेटा-बहु मिलकर जब , छोड़ आए माँ को वृद्धाश्रम अब|
बेबस माँ कुछ न बोली ,चली गई चुपचाप साथ|
गई वृद्धाश्रम करने मैं सेवा जब, पढ़ी नजर मेरी तब ,
देख उस वृद्ध माँ को रह गये मेरे चक्षु दगं | मैनें देेखा ये है वो माँ, जिसको नाज था अपने बेटे पे, हुआ अफसोस बहुत ये, क्योंकि था मित्र मेरा ही वो, माँ ने सुनाई सारी कहानी उन्होनें अपनी मुँह जुबानी|
हुआ दुख देख वृद्ध माँ की ऐसी हालत, कभी खाई थी मनेैं भी उनके हाथों से वो कोर | विनती है ये सबसे करो न वृद्ध माता-पिता से ऐसे, होंगे हम भी कभी वृद्ध ,बीते न खुद पर कभी ये|
करो सम्मान वृद्ध माता पिता का ,
अरे ये वो वृक्ष है, जिनमें लगे है फल हम जैसे|