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विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस,,,,,आलेख
कहावत है स्वस्थ शरीर में ही एक स्वस्थ मस्तिष्क रहता है।
प्रत्यक्ष रूप से यह इतनी विकट समस्या नहीं मानी जाती। किन्तु सौ में से चार व्यक्ति किसी न किसी मानसिक व्याधि से ग्रस्त पाए जाते हैं।अतः इस क्षेत्र में जागरुकता लाने हेतु सन 1992 से 10 अक्टोबर को यह दिवस मनाया जाने लगा।
यूँ तो मानसिक रोगों के प्रमुख कारण बीमारी, बेकरी, रिश्तों में तनाव,घरेलू विवाद ,भविष्य की चिंता आदि हैं। किंतु मनोवैज्ञानिक दृष्टि से देखा जाए तो यह एक व्यक्ति के स्वभाव व उसकी नकारात्मक सोच होती है।
कई लोग विषम परिस्थितियों में भी स्वयं की स्थिति डावांडोल नहीं करते। वे हर मुसीबत में,,,सब ठीक होगा,ये दिन भी गुज़र जाएंगे
अपनी स्थिति सामान्य रख सदा सकारात्मक सोच रखते हैं। और जीत जाते हैं।
सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा है कि यह सृष्टि सोच से ही निर्मित होती है। जी जैसा सोचेंगे वैसा बन जाएंगे। फ़र्क देखिए
कि आधा भरा पानी का ग्लास अ को आधा खाली तो ब को आधा भरा लगता है। जो भी होगा अच्छा ही होगा की सोच वाले तनाव से दूर रहते हैं। कभी कभी हम अपने अनुमानों को हनुमान जी की पूंछ माफ़िक विस्तरित करते जाते हैं। बच्चे को आने में देर क्या हुई कि पचासों शंकाएं घेर लेती हैं,,दुर्घटना अपहरण आदि कई विचार आने लगते हैं।एक बात और कि सोची बात सच भी हो जाती हैं । क्योंकि हमारे दिमाग़ से निकलने वाली नकारात्मक तरंगें प्रभाव भी
डालती हैं। तो क्यों न अच्छा ही सोचे व् मानसिक रोगों से बचे।
अपने मन में उठने वाले बुरे विचारों को ,अपनी समस्या को अपने किसी अजीज से शेयर करें। आध्यात्म भी एक साधन है। जैसे स्वस्थ तन के लिए शारीरिक व्यायाम करते हैं वैसे ही दिमाग की कसरत भी जरूरी है। प्राणायाम
ध्यान से बेकार के व्यर्थ विचारों से मुक्ति मिल जाती है। एक भरोसो एक बल हमें परमात्मा से ही मिलता है।जी
हिम्मते मर्दा मददे खुदा।
फिर भी यदि मानसिक रूप से कोई समस्या है तो बिना शर्म के चिकित्सीय सहायता लेना चाहिए। अन्यथा आजकल अमूमन युवावर्ग में आत्महत्या की भावना घर कर लेती है। हमें भी अपने आसपास कोई निराशा से घिरा दिखे तो उसकी मदद करना चाहिए ।निरोगी मन व निरोगी काया ही सुस्वास्थ्य की कुंजी है।
सरला मेहता