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धरा की पुकार - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

धरा की पुकार

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4धरा की पुकार

धानी चूनर मुझे ओढा दो
मरुथल का दाग मिटा दो
नववधु सा श्रृंगार करा दो

घने केश सी झरे ये नदियाँ
भीगी सी मोती की लड़ियाँ
पारिजात पुष्प बिखरा दो

गुलमोहर चमेली हरसिंगार
बेला चंपा जुही व रातरानी
हरी भरी चूनर में लगवा दो

गुलाब रजनीगंधा का हार हो
कर्णफूल गुलाबी कनेर के हो
करधूनी कचनारी लटका दो

मेंहदी रचे हाथों व पैरों में मेरे
मोगरे की नन्हीं कलियाँ गूथ
महकते प्यारे गजरे पहना दो

उषा लालिमा से मांग भरा दो
बसंती गेंदे का टीका पहना दो
सूरज की बिंदी भालपे लगादो

यूँ ही मुझे दुल्हन बनाते रहना
वैधव्य से सदा बचाए रखना
भरती रहूंगी झोली खुशियों से
सरला मेहता

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Sudhir Kumar

Sudhir Kumar 3 years ago

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