कविताअन्य
खुली किताब.....
मैं एक खुली किताब,जिसे पढ़ न सके तुम कभी|
पढना तो दूर, पन्ने भी पलटे न कभी||
सपने आज भी अधूरे रहे गये,जिसे कर न सके तुमने पूरे कभी.....
आस आज भी तुमसे ऐसी है, कि पूरी करोगे इनको तुम भी कभी....
सारे ख्वाब कुछ ऐसे ढह गये, जैसे मुठ्ठी से रेत
न अब कोई तमन्ना, और न रही अब कोई चाह....
मैं एक खुली किताब, जिसे पढ न सके तुम कभी....
अफसोस हमेशा यह रह गई, क्यों न पढ सके तुम कभी...
मैं एक खुली किताब, जिसे पढ न सके तुम भी.....
रानी सिंह
सह अध्यापिका
क्रिस्टोफर डे़ स्कूल
खड़गपूर|
दिनांक-26/10/20
तुमने कर लीजिए, थोड़ी बहुत टँकन त्रुटियाँ है कोई बात नही धीरे धीरे सभी सही हो जाएगा प्रयास अच्छा है आपका लिखती रहिये पोस्ट करती रहिये। और साथ ही सभी पोस्ट पर कॉमेंट भी करते रहिए।
जी धन्यवाद!?बस आप ऐसे ही मार्गदर्शन कराते रहिए|