कहानीसंस्मरण
प्रेरक प्रसंग
ई नै चोलबे
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मित्र के बहन की शादी थी।मित्र बहुत चिंतित था उसे एक ईमानदार आदमी की आवश्यकता थी जो ईमानदारी से कन्यादान लिख सके।
मैं भी कन्यादान लिखबाने पहुॅंचा था। लेकिन अभी तक एक भी ईमानदार आदमी उसे नहीं मिला जो ईमानदारी से कन्यादान लिख सके तो वह चिंतित था।
मित्र बड़े चिंतित दिखाई दिए तो पूछ लिया एतना उदास काहे हो?
उसने अपनी व्यथा कह सुनाई मेरा मन पसीज गया। मैं ने कहा- ला मैं लिख देता हूॅं।उसकी उदासी दूर हुई तो एक टोकरी में दूब अछत धान के साथ एक डायरी और पेन लाकर दिया। इस तरह मुझ नाचीज़ को कन्यादान लिखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ।
अपुन एक टेबल के साथ कुर्सी पर कन्यादान लिखने का सामान लेकर बैठ गया। पहला ग्राहक आया साथ में तीन लोग थे एक महिला भी थी कान में कुछ आपस में फुसफुसाया। शायद उनके साथ कन्या पक्ष का लेन- देन का मामला कैसा रहा है?
पहली बोहनी इक्कीस रूपये से हुआ। जितने भी मोटे लोग आते वे लोग दुबले पैसे देते और दुबले आदमी मोटे पैसे देते। लोगों का आना-जाना जारी था।लोग आते पेट भर खाते कुछ इससे भी ज्यादा पैक करा और इच्छा अनुशार दान करते और चले जाते।
मै ने डायरी के ऊपर बाएं दाएं शुभ+लाभ लिख दिया था।बीचमें श्री गणेश जी के साथ ब्याज सहित शुद्ध लाभ लिख दिया।
सरीक होने के बाद खाना खाकर एक बंगाली दंपति आए दोनों की उमर यही कोई पच्चीस साल कोई लड़का बच्चा साथ में नहीं।शरमाते सकुचाते बोले ओ भाई साव लो तनिक कन्यादान लिख दो।
मेरे हाथ में पूरे एक सौ एक रूपया दे दिया नाम ठिकान कुछ बताए नहीं तो मैं ने लिख दिया बंगाली युगल दंपति से एक सौ एक प्राप्त! बंगाली दंपति हिन्दी नहीं जानते थे दंपति में से स्त्री बोली ओ भाई साव "ई नै चोलबे" नाम या तो बांगला लिखो या फिर अंगरेजी लिखो।
मैने कहा दोनों नहीं आता इसलिए अपुन हिन्दी लिखा।दोनों अड़ गए आपको लिखना पड़ेंगा तो मैनें मजबूरी में लिख दिया वन हंडरेड वन लिखते हुआ बोला ई चोलबे दंपति संतुष्ट होते बोले ई चोलबे और चले गए।
©भुवनेश्वर चौरसिया "भुनेश"