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नादान परिंदे - Priyanka Tripathi (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

नादान परिंदे

  • 199
  • 3 Min Read

स्वरचित मौलिक:: नादान परिंदे

क्यो छाई है,
अतंरद्वन्द की बदरी।
तेरे ब्याकुल मन मे,
ऐ नादान परिंदे।।

क्यों मन कैद है,
मायूसी के पीजंरे मे।
तोड़ दे निराशा की जंजीरे,
ऐ नादान परिंदे।।

वक्त है तेरा,
वक्त को बदल दे।
साध के लक्ष्य,
पत्थर को पिघला दे।।

वक्त हाथ फैलाए खड़ा है,
तेरे वजूद को तराशने।
छू ले गगन को ,
हौसलो की उड़ान से।।

जो अडिग रहते है,
मंजिल उन्ही को मिलती है।
जो हारकर भी रूकते नही,
कामयाबी उन्ही के कदम चूमती है।।

थाम ले ब्याकुल मन को,
छाँट दे अंतरद्वन्द की बदरी को।
तू फिर से उड़ान भर,
ऐ नादान परिंदे।।

प्रियकां पान्डेय त्रिपाठी
प्रयागराज उत्तरप्रदेश

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Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बढ़िया जी। पिंजरा

Priyanka Tripathi3 years ago

बहुत बहुत धन्यवाद?

Sarla Mehta

Sarla Mehta 3 years ago

बढ़िया जी। पिंजरा

Priyanka Tripathi3 years ago

???

प्रपोजल
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