Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
बिखरते चंद्रबिंदु - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

बिखरते चंद्रबिंदु

  • 138
  • 6 Min Read

( हमारी लिपि के अभिन्न अंग हैं कुछ प्रतीक जैसे चंद्रबिंदु(ं), पूर्ण विराम (.), रिक्त स्थान (....) जो भाषा को परिपूर्ण बनाकर एक अर्थ देते हैं.इनके द्वारा मैने जीवन को परिभाषित करने का प्रयास किया है )

वक्त की इन
तूफानी सी
तेज हवाओं में
पल-पल रंग
बदलती रहती
इन फिजाओं में

जीवन की इस किताब में
उम्र के हर एक कोरे पन्ने पे
मन की इस दीवानी सी कलम से लिखे
अक्षरों को खास स्वर देते हुए से दिखे
यहाँ-वहाँ, जहाँ-तहाँ यूँ टँगे हुए
अरमानों के कुछ रंगों में रंगे हुए

सपनों के सब "चंद्रबिंदु"
कुछ उधर, कुछ इधर गये
और कुछ ना जाने किधर गये,
यूँ इस तरह बिखर गये

"चंद्र" तो बस बीच में ही
छोड़कर इन सबका साथ
करके इन सबको अनाथ
बनाकर जीवन को
अमावस की
काली अँधेरी लम्बी रात

और ये सारे बिंदु
कुछ तो बनकर पूर्ण विराम
बीच-बीच में ही कहीं
देकर अनचाहे विराम
देकर बिन बुलाये से कुछ ठहराव
जीवन का हर एक पड़ाव
कुछ सूना सा कर गये

और बाकी सभी कुछ
श्रंखलाओं में बँधकर
(...) से बनकर
दे गये खाली जगह
बनकर भटकावों और
ठहरावों की एक वजह

और कभी तो बन गये
कुछ ऐसे गूढ़ रहस्य
और बना गये इस जीवन को
एक टेढ़ी-मेढी, अलबेली
अनसुलझी सी,
अनबुझी सी एक पहेली

द्वारा: सुधीर अधीर

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg