कविताअतुकांत कविता
हां मै एक औरत हूँ ----
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मै सीता नहीं हूँ सावित्री नहीं हूँ
पर पुरुष तो राम है,क्योंकि मै औरत हूँ ,
तुम बाजार की सीमा रोंदो ,
तो कोई आरोप नहीं ,
मै यदि आंख उठाकर देख लूं ,
तो चरित्र हीन हूँ ,
क्योंकि मैं एक औरत हूँ ,
तुम चाहो तो हजार व्यसन करो ,
मै अपनी जिन्दगी भी ना जीऊं ,
क्योंकि मै एक औरत हूँ ,
मोहब्बत का हक केवल तुम्हारे हिस्से में है,
मेरे लिये वह गलत है ,
क्योंकि मै एक औरत हूँ ,
तुमको सब हक है मुझको क्यों नहीं ,
बस मुझको केवल एक हक है ,
कि मैने तुम्हारा निर्माण किया है,
क्योंकि मै एक औरत हूँ...
स्व रचित ##
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डा .मधु आंधीवाल एड.
अलीगढ़