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माँ अंबे - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

माँ अंबे

  • 117
  • 11 Min Read

माँ अंबे,
माँ जगदंबे,
माँ चंद्रघंटे,
कूष्मांडे,
माँ शैलपुत्रि,
कालरात्रि,
सिद्धिदात्रि,
माँ ब्रह्चारिणि,
हे माता कात्यायिनि,

जय जय माँ ,
महागौरी, स्कंदमाता,
भूल गई क्यों
तू तो है सबकी ही माता
क्यों तोड़ दिया, माँ,
बच्चों से वह
स्नेह भरा माँ का नाता
माँ होकर भी,
हम बच्चों का यह
संकट कैसे तुम्हें सुहाता

वह रक्तबीज,
बन कालबीज,
फिर से हुआ
कण-कण में व्याप्त
माँ, कर करुणा,
यह कोरोना,
यह कालकूट
विष का दोना
कर दो समाप्त
कर दो समाप्त

माँ काली,
फिर से धर ले,
कर में तू खप्पर
हो सिंहारूढ़,
पुनः, हे माँ,
इस रक्तबीज पर
टूट पड़

इस जड़-चेतन,
इस गगन, पवन,
और अनल, जल,
भूतल का
कण-कण,
तृण-तृण

त्राहि-त्राहि कर,
बारंबार
आर्त स्वर में
करे पुकार
कालग्रास बनता मानव,
है मौन प्राण-पंछी का कलरव,
जीवित नरकंकाल बना
कर रहा
विवश सा चीत्कार

माँ, कोटि-कोटि जन का मंगल " शिव "
तन-मन-धन का चिर मंगल " शिव "
हो धूलि-धूसरित,
और विचलित
लेट गया है, फिर से,
तेरी राह में
हे माँ काली, विकराल वेग को
अब तो पूर्ण विराम दे

हे कालरात्रि,
फिर एक बार
फिर से जननी बन,
जन-जन की
मंगलकरणी बन
अन्नपूर्णा, संपूर्णा
माँ भद्रा, आशापूर्णा
फिर से अब बन जा क्षमा
और अब फिर से जला दे
जीवन की बुझती शमा

कालपाश-संत्रस्त मानव,
त्रिविध ताप-संतप्त मानव
अब और नहीं सह सकता
यह विकराल रूप
माँ, उषाकिरण बन,
वात्सल्य से खिलते
फूलों की छुअन बन
और फिर से बन जा, माँ,
जीवन की उजली सी धूप

माँ, दूर कर यह
काल की काली छाया
माँ धात्रि,
बन फिर से
अब जीवन-दात्री
और पुनः फैला दे
तू अपनी वह
स्नेहिल माया
आरोग्य-लक्ष्मि,
कर दे निरोग,
हर रुग्ण काया

माँ शारदे, विज्ञान को
फिर एक अद्भुत ज्ञान दे
धन्वंतरि के हाथों, माँ,
एक दिव्य औषधि दान दे

माँ, तू ही हम सबका मूल
माफ करो, हम बच्चों की
हर एक भूल

माँ, पूत कपूत तो हो सकते हैं,
पर माँ कभी ना बनी कुमाता
बार-बार तेरे उदार
उस रूप को याद
दिलाते, माता

माँ, महाकाल तेरे वश में,
तेरी शक्ति बिना तो वे भी
शक्तिहीन, लगते विवश से
माँ, महाकाल को
भोले रूप में ले आओ

उस परमपिता,
औघड़ दानी को,
समझाओ
सबको जीवनदान दिलाओ
नीलकंठ बन
इस विष को
माँ, कंठवास
फिर करवाओ

माँ परमसत्य को
शिव,सुंदर, मंगलस्वरूप में
लौटाओ

मानवजाति को बस
तेरा ही आसरा है
माँ, हर बच्चा
तेरे द्वारे पर
आज बेबस सा पडा़ है

हे माँ, उमा, हिमगिरिसुता,
अब अभयदान दे,
कर उठा
अब अभयदान
देकर उठा

द्वारा: सुधीर अधीर

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