कविताअतुकांत कविता
*काव्य रचना : अपनी श्रेष्ठ संग्रह मे से एक रचना ...,*
*आंसुओं को पनाह नहीं मिलती*
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यह सच है --कि
उनको पनाह नहीं मिलती
इस जहान में...
कब और कहाँ --आ जाये
पता नहीं
सहारा मिले या नहीं
एकांत हो या नहीं
ग़म हो या खुशी
उनको तो आना ही है
बिन बुलाये मेहमान की तरह
कई बार कहा है --कि
एकांत में आया करो --पर
वह, -आ -जाती है जब -मै
महफ़िल में या लोगों के बीच
होता हूं.....,
और..,
आकर नम कर जाती है,नयनों को
और कहती है...
भीड़ में भी तन्हा थे -तुम
तभी तो मै, आती हूं -साथ देने को
इस तन्हाई में....
मुझे तो पनाह भी नहीं मिलती
घड़ी भर की ----तभी तो
किसी ने सच ही कहा है...
इन आंसुओं को पनाह नहीं मिलती
इस जहाँ मे..... ||
शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली -पंजाब
स्वरचित मौलिक रचना