Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
आँसुओं को पनाह नहीं मिलती - शशि कांत श्रीवास्तव श्रीवास्तव (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

आँसुओं को पनाह नहीं मिलती

  • 220
  • 4 Min Read

*काव्य रचना : अपनी श्रेष्ठ संग्रह मे से एक रचना ...,*

*आंसुओं को पनाह नहीं मिलती*
***************************
यह सच है --कि
उनको पनाह नहीं मिलती
इस जहान में...
कब और कहाँ --आ जाये
पता नहीं
सहारा मिले या नहीं
एकांत हो या नहीं
ग़म हो या खुशी
उनको तो आना ही है
बिन बुलाये मेहमान की तरह
कई बार कहा है --कि
एकांत में आया करो --पर
वह, -आ -जाती है जब -मै
महफ़िल में या लोगों के बीच
होता हूं.....,
और..,
आकर नम कर जाती है,नयनों को
और कहती है...
भीड़ में भी तन्हा थे -तुम
तभी तो मै, आती हूं -साथ देने को
इस तन्हाई में....
मुझे तो पनाह भी नहीं मिलती
घड़ी भर की ----तभी तो
किसी ने सच ही कहा है...
इन आंसुओं को पनाह नहीं मिलती
इस जहाँ मे..... ||

शशि कांत श्रीवास्तव
डेराबस्सी मोहाली -पंजाब
स्वरचित मौलिक रचना

logo.jpeg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg