कविताअतुकांत कविता
बच्चे मन के सच्चे
बच्चे होते हैं मन के सच्चे
छल कपट से दूर ये रहते
सीखो इनसे बनना अच्छे
भेदभाव कभी नहीं करते
सब अच्छा,सब हैं अच्छे
समभावना सदा ये रखते
लोभ मोह भी नहीं जानते
जो देखते हैं वही बखानते
सभी को अपना ही मानते
सच कबूलते एकदम सही
पापा ने कहा वे घर में नहीं
हाँ है न,आप ले जाओ दही
कुछ पलों में बैर भूल जाते
जो मारते उसी को सहलाते
पापी नहीं,बुरी पाप की बातें
जहाँ जाते,वहीं के हो जाते
छोटे बड़े का भेद ये मिटाते
भूल सब बातें हँसते हँसाते
अपने पराए भी नहीं जानते
जो मिले उनको गले लगाते
विश्वबंधुता का ये पाठ पढ़ाते
कुछ भी किसीसे नहीं छुपाते
अपनी चीज़े सभी को लुटाते
दरियादिली सबक हैं सिखाते
सरला मेहता