कविताअतुकांत कविता
अन्याय की जयजयकार
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आज भी वही दुनियाँ है
जहाँ अन्याय की होती जयजयकार है |
वह भी असहाय है
जो न्याय के नाम पर बनती सरकार है |
उसके सभी अंगों में वही बसे हैं
जिनके नश नश में अहंकार है |
उन्हीं के हाथों होनेवाला अपना उद्धार है |
हमारी ही शह पाकर वे हमें मात दे रहे हैं |
जाने अन्जाने में अपनी मौत का हम साथ दे रहे हैं |
ये बाहुबलि ,ये धनबलि बने हैं
हमारे ही धन बल को लूटकर
हम उनका साथ देते अपने आप में में भी टूटकर
हम नमन करते हैं उनका ,वे हमारा दमन करते हैं
दिखाते हैं ऐसा हमारे लिए ही गमन करते हैं |
बस बोलते वही हम तो बने रहते हैं श्रोता
अगर कोई बात जुबान से निकल गयी
तो लगता है छेड़ दिया बिर्हनी का खोता |
कहाँ उन्होंने हमारे कंठ में स्वर रहने दिया है
अपनी जागीर में न कहाँ घर रहने दिया है |
न्याय उनके घर से निकलकर उनके ही चौखटे पर दम तोड़ देता है |
हम तो बस उनके अन्याय का तांड़व देखते रह जाते हैं
जो हमें कोड़ देता है |
बस विवश हैं उनकी सुनने को , उन्हीं के गुणने को
उन्हें समर्थन है उनके समुदाय का
उन्होंने वचन दिया है उनकी रक्षा का ,जान माल की सुरक्षा का |
वो जाति का गौरव है ,दूसरी जाति का संघारक है
नफरत से पैदा हुआ वह क्रूरता का कारक है |
विभेद के सूत्रों से बँधा सबसे बड़ा समाज सुधारक है |
न्याय तर्क और वितर्क से नहीं जनमते
वह तो उसके धनबल और बाहुबल का अनुगामी है |
क्या बदली है दुनियाँ ,सब वही है
आज भी उसकी ही चलती है जो
जो बाहुबल का पदगामी है |
ये सरल नहीं धूर्त और शातिर हैं
उनकी नजर में हम ,धरा पर आए उनकी खातिर हैं |
ये जाति ,धर्म और वर्ग के बीच वैमनस्य का परिणाम है
हम अपने घरों में पालते आए आए नाग हैं |
यह समझकर कि यह दूसरों को डँसेगा |
और जो मुझे डरा रहा था ,उसे डरता देख मेरा मन हँसेगा
पर वह नाग है हर किसी को डँसता है |
विष ही जिसका स्वभाव है ,वह कहाँ अमृत छिड़कता है|
कृष्ण तवक्या सिंह
23.10.2020