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धरा की पुकार - Sarla Mehta (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

धरा की पुकार

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धरा की पुकार

धानी चूनर मुझे ओढा दो
मरुथल का दाग मिटा दो
नववधु सा श्रृंगार करा दो

घने केश सी झरे ये नदियाँ
भीगी सी मोती की लड़ियाँ
पारिजात पुष्प बिखरा दो

गुलमोहर चमेली हरसिंगार
बेला चंपा जुही व रातरानी
हरी भरी चूनर में लगवा दो

गुलाब रजनीगंधा का हार हो
कर्णफूल गुलाबी कनेर के हो
करधूनी कचनारी लटका दो

मेंहदी रचे हाथों व पैरों में मेरे
मोगरे की नन्हीं कलियाँ गूथ
महकते प्यारे गजरे पहना दो

उषा लालिमा से मांग भरा दो
बसंती गेंदे का टीका पहना दो
सूरज की बिंदी भालपे लगादो

यूँ ही मुझे दुल्हन बनाते रहना
वैधव्य से सदा बचाए रखना
भरती रहूंगी झोली खुशियों से
सरला मेहता

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Madhu Andhiwal

Madhu Andhiwal 3 years ago

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