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नवरात्रि और श्रद्धा - Amrita Pandey (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

नवरात्रि और श्रद्धा

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नवरात्र आए हैं फिर इस बार
पर महामारी का हाहाकार,
मैंने यह संकल्प लिया है
अपना धर्म निभाऊंगी,
मां का लहंगा नहीं खरीदा
ना अपनी चूड़ी श्रृंगार,
भूखे प्यासों का चेहरा
आंखों में आए बारंबार,
छोटा सा जो भी होगा
अपना अंश दिलाऊंगी,
जब सारा जग बने निरोगी
मां से वचन निभाऊॅंगी,
लहंगा-चुनरी चढ़ाऊंगी
सुंदर सा हार पहनाऊॅंगी,
मां! श्रद्धा की भूखी हो तुम
उसमें ना होगी कोई कसर,
सारे जग की पीड़ा हर लो
गर वाणी में हो मेरी असर.....।।

अंमृता पांडे

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