कवितालयबद्ध कविता
शक्ति दो माँ !
हो रही तार-तार, "तेरी बेटियाँ माँ !"
नोंच खाया गिद्धों ने
ना जाने कितनी बेटियों को.....
हैवानियत की, सारी हदें पार कर गए.....
पर हया ! कि एक शिकन
तक ना दिखीं, उनमें.....
भरी सभा हँसती है नारी पर
किसी ने ना उठाया, अस्त्र.....
सब बन चुके हैं कठपुतली !
अब तुम्हीं उद्धार करो, माँ !
दे दो, शक्ति हर नारी को.....
नहीं है यहाँ कोई कृष्ण !
दे दो, अपने नौ रूप माँँ !
जो बन दुर्गा ! करे संहार
महिषासुर जैसे, राक्षसों का.....।
@चम्पा यादव
20/10/20