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कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में - Bhawna Sagar Batra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में

  • 141
  • 6 Min Read

काश कोई समझने वाला हो ,
मेरी कविताओं को न भी पढ़े ।
मगर मुझे पढ़ने वाला हो
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।

बिन बोले ही सुनले ऐसा भगवान नहीं चाहा ,
बताकर भी न समझे वो इंसान नहीं चाहा ।
जो साथ रहकर समझ सके मेरे सच और झूठ को,
और दोहरा न कहे मेरे किसी भी रूप को ।

बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।

मेरे प्यार को बस प्यार समझे ,
गुस्से को समझे जो नादानी ,
जो हालातों से हुआ उन्हें हालात समझे,
जो दिल में नहीं है मेरे गलत,वो बात समझे ।

बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।

जिसे सफाईयां देने का सिलसिला न हो,
और जिससे सफाईयां लेने का भी सिलसिला न हो ।
उसकी हां में अगर मुझे हां मिलानी हो ,
तो मेरी हां में हां मिलाना उसको भी ज़रूरी हो ।

बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।

जीवनसाथी हो तो साथ भी दे ,
दिखावे के लिए नहीं ज़रूरत पढ़ने पर,
जो हाथ भी दे ।
साथ दूँगी उम्र भर सही चीज़ में उसका ,
मगर मेरे सही होने पर वो मेरा साथ भी दे ।

बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा

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