कविताअन्य
काश कोई समझने वाला हो ,
मेरी कविताओं को न भी पढ़े ।
मगर मुझे पढ़ने वाला हो
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
बिन बोले ही सुनले ऐसा भगवान नहीं चाहा ,
बताकर भी न समझे वो इंसान नहीं चाहा ।
जो साथ रहकर समझ सके मेरे सच और झूठ को,
और दोहरा न कहे मेरे किसी भी रूप को ।
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
मेरे प्यार को बस प्यार समझे ,
गुस्से को समझे जो नादानी ,
जो हालातों से हुआ उन्हें हालात समझे,
जो दिल में नहीं है मेरे गलत,वो बात समझे ।
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
जिसे सफाईयां देने का सिलसिला न हो,
और जिससे सफाईयां लेने का भी सिलसिला न हो ।
उसकी हां में अगर मुझे हां मिलानी हो ,
तो मेरी हां में हां मिलाना उसको भी ज़रूरी हो ।
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
जीवनसाथी हो तो साथ भी दे ,
दिखावे के लिए नहीं ज़रूरत पढ़ने पर,
जो हाथ भी दे ।
साथ दूँगी उम्र भर सही चीज़ में उसका ,
मगर मेरे सही होने पर वो मेरा साथ भी दे ।
बस इतनी सी तो ख्वाहिश थी मेरे मन में ,
कैसे कहूँ क्या दफन है मेरे ज़हन में ।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद,हरियाणा