कविताअन्य
मैं पूर्व से उगती धूप सी हूँ ,
वो ढलती किसी शाम सा है ।
मैं अधूरी कोई किताब सी हूँ ,
वो किसी पूरी कहानी सा है ।
रिश्ता न जाने कैसे खुदा ने ये जोड़ दिया
मैं बिखरे हुए कागज़ के टुकड़े,
वो सिमटी हुई किसी किताब सा है ।
मैं हकीकत की कोई कहानी,
और वो एक ख्वाब सा है ।
मैं उस बिन अधूरी सी हूँ ,
वो खुद में ही पूरा सा है ।
मैं पूर्व से उगती धूप सी हूँ ,
वो ढलती किसी शाम सा है ।
©भावना
फरीदाबाद,हरियाणा