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हुआ जा रहा गड़बड़झाला - Dr. Rajendra Singh Rahi (Sahitya Arpan)

कवितागजल

हुआ जा रहा गड़बड़झाला

  • 113
  • 3 Min Read

प्रिय सबको है केवल माला...

हुआ जा रहा गड़बड़झाला
प्रिय सबको है केवल माला....

उनकी इज्जत उन से पूछो
बदल रहे जो हर-दिन पाला....

ऐसी बन्दी से क्या मतलब
खुला हुआ है दर-दर हाला...

कैसे साफ दिखेगा दर्पण
जमा बहुत उस पर है जाला....

व्यर्थ पोतना कालिख होगा
जिसका अन्तर्मन है काला....

दूर गंदगी कैसे हो जब
पटा हुआ हर चौड़ा नाला....

संकट लगता दूर हो गया
बोल रहे सब खोलो ताला.....

नींद आ रही उनको अच्छी
जो किस्मत से साहब आला...

उनका होगा क्या बतलाओ
जो कहते हैं खुद को लाला....

सिर्फ गरीबों के ही घर की
मारी जाती है क्यों बाला....

डाॅ. राजेन्द्र सिंह राही
सर्वाधिक सुरक्षित

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