लेखआलेख
शादी....
दो लफ्ज़....मगर इसके असल मायने समझने में सारे लफ्ज़ ख़तम हो जाते हैं....
कोई बताता भी नहीं है कि ऐसा कौन सा लफ्ज़ होगा जो इसके मतलब को पूरा करे....
सब जी रहे हैैं..सब निभा रहे हैं..
लेकिन सबका वजूद कहां है...
सब आज भी बस वहीं एक लफ्ज़ ढूंढ रहे हैं...
ढूंढने से तो खुदा भी मिल जाता है..
लफ़्ज़ों की क्या औकात है...
है ना.............