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आलेख - मनीष कुमार पाटीदार (Sahitya Arpan)

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राष्ट्र निर्माण के सच्चे प्रणेता थे महात्मा गांधी

नैतिक मूल्यों का परम्परागत निर्वाह करने वाले विरले ही होते हैं। राष्ट्रीय चेतना के अद्भुत और संपूर्ण विश्व के ऐतिहासिक सिद्ध पुरुष के रुप में जितनी विचारणीय महत्वाकांक्षी चमक महात्मा गांधी में देखने में आई वह शायद ही किसी ओर में देखने या सुनने में आई हो।
वैसे सत्य अहिंसा और प्रेम के सच्चे पूजारी महात्मा गांधी के जीवन में कितनी वेदनाएं रही, कितना संघर्ष रहा और किस तरह वैश्विक स्तर पर आधारभूत भारत को स्वतंत्रता दिलाई इसे लेकर अब तक बहुत लिखा व सुना जा चुका है। परंतु आलोचना की दृष्टि से देखा जाये तो गांधी का जीवन पहले भी आलोचनाओं से भरा रहा और अब भी है। वैष्णव समाज से संबंध रखने वाले सत्य सनातन की पूजा करने वाले महात्मा गांधी ने सर्वधर्म में एकता व शांति स्थापित करके मानवता का जो परिचय दिया उस पर आज भी उनके विचारों पर आध्यात्मिक दृष्टिकोण से बड़े बड़े राजनीतिज्ञों, धर्मशास्त्रियों ने गांधी की महानता को सिद्ध किया है। गांधी जन्म से महात्मा नहीं थे। उनके विचारों ने उनकी वाणी और वैष्णव जन से मिले संस्कारों ने उन्हें महात्मा बनाया। दक्षिण अफ्रीका या इंग्लैंड की यात्रा हो वह जहाँ - जहाँ भी गये भारतवर्ष की संस्कृति की अमिट छाप छोड़कर आये। अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ अहिंसा के बल पर सत्याग्रह आन्दोलन चलाकर जो सभ्य भारतीय की मिसाल कायम की वह आज भी बेहद प्रासंगिक है।
राष्ट्रीय चेतना की आलौकिक रौशनी का प्रादुर्भाव गांधी युग से पुनः स्थापित हुआ था। कल्पना से परे महात्मा गांधी सत्य की कसौटी पर सटीक निर्णय लेने में बहुत सफल रहे। आत्मियता के साथ गांधी का जितना प्रेम हिन्दुओं के साथ रहा उतना ही अन्य सम्प्रदाय के लोगों के साथ रहा। सत्य अहिंसा व प्रेम की अद्भुत मिसाल कायम करने वाले राष्ट्रपिता के रुप में गांधी की छवि आज भी ऐतिहासिक पन्नों में सुशोभित है। आध्यात्मिक सिद्धांतों की वजह से गांधी ने जीवनभर की सहिष्णुता का परिचय हे राम! के माध्यम से दिया वह सच्चाई का प्रतीक आज भी साहित्य में अजर अमर है। चुंकि गांधी साहित्य अपने आपमें सर्वश्रेष्ठ और सहज सरल साहित्य पढ़ने सुनने में आता है। सत्य अहिंसा व प्रेम की आलौकिक प्रतिमा के रुप में गांधी संपूर्ण विश्व में विख्यात है।महान से महान दार्शनिक गांधी के सिद्धांतों का प्रतिपादन कर आगे बढ़ने की चेष्टा करते आये हैं। विभिन्न आंदोलन और दांडी यात्रा के सूत्रधार गांधी का संपूर्ण जीवन भारतवर्ष को समर्पित रहा।
दक्षिण अफ्रीका, लंदन और इंग्लैंड में पढ़ाई व वकालत के दौरान गौरवशाली भारतीयता का परचम लहराने में मोहनदास करमचंद गांधी ने अमिट छाप छोड़ी थी। १५१ वीं जयंती में प्रवेश करने वाले महात्मा गांधी आज भी इतिहास के सुवर्ण अक्षरों में सुशोभित है। राजघाट पर कुसुम की कलियों के बीच समाधिस्थ महात्मा गांधी की जीवन यात्रा वध के समय तक सत्य प्रेम व अहिंसा की जीत लिये आज मुस्कुरा रही है। महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने ठीक ही कहा था - महान वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टीन ने गांधीजी के बारे में १९४४ में लिखा था-‘आने वाली नस्लें शायद मुश्किल से ही विश्वास करेंगी कि हाड़-मांस से बना हुआ कोई ऐसा व्यक्ति भी धरती पर चलता-फिरता था।’

प्रेषक - मनीष कुमार पाटीदार, ईटावदी (महेश्वर)

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