कविताअतुकांत कविता
बहुत आसान है हादसों के बाद मोमबत्तियां लेकर सड़कों पर उतरना,
करना है तो करो इतना कि खुद की नजरों से किसी को ना कर बरहना।
सुनते है गर चीखें किसी की कान ना बंद कर के तुम गुजरना,
थोड़ी सी हिम्मत कर उस ज़ुल्म से मिलकर तुम रावण से लड़ना
फायदा ही क्या हादसों के बाद हल्ला कर या शांति से मोमबत्ती जलाना,
किसी कमजोर को हादसों से बचा सकें कभी तो खुद को सही समझना।
गूंगे बहरे से होते है या बस अफसोस जताते है कि बात दूसरे की होती है,
मुर्दे नहीं है जिंदा है सभी खुली आंखों से आवाज़ से जाहिर तो करो।
कीमत आज मंदिर मस्जिद या जानवरों की इंसानों से ज्यादा है,
की किसी लड़की या गरीब से कुर्सी से ' किरन' ना मिलता कोई फायदा है।
एक सच्चाई और समाज की मानसिकता पर चोट करती हुई रचना। बेहद संवेदनशील लिखा है किरन
Thank you di