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पहला सुख आलसी काया - Sudhir Kumar (Sahitya Arpan)

लेखअन्य

पहला सुख आलसी काया

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जी हाँ, " पहला सुख आलसी काया ". मुझसे असहमत होने वाले शायद आलसी काया की माया से जन्मे परम आरामसुख के मूलभूत सार तत्व को नहीं समझते. आलस्य मन-प्राण के परमानंदरस में आकंठ लसलसाने की एक चरम सीमा को पार करती एक अद्भुत अलौकिक अनुभूति है जो तर्क और बुद्धि से परे है. यह तो गूँगे का गुड़ है जिसका स्वाद वाणी की लक्ष्मणरेखा से बाहर है.

आलस्य मन का एक निर्गुण, निराकार रूप है जो तन में अवतरित होकर सगुण, साकार रूप धारण करके आराम में ढल जाता है. इस आलास्यानंद की अनुभूति के लिए किया जाने वाला आराम " आ राम " का मंत्र बनकर आनंद रूपी राम के आवाहन का रामबाण साधन है. आराम-योग राम को आने का एक भाव-विह्वल आग्रह करता हुआ एक सहज, सरल, तरल, सरस भक्तियोग है. जिसे आलास्यरसिक ही अनुभव कर सकते हैं. श्रम के जटिल कर्मयोग में कर्त्ताभाव अहं बनकर लुटिया डुबो देता है. कर्त्तव्य-बोध जैसा दुष्पाच्य गरिष्ठ ज्ञानयोग एक जटिल ग्रंथि बनकर मन को आनंदरस से वंचित करके जल बिन मीन सा व्याकुल कर देता है.

" अजगर करे ना चाकरी, पंछी करे ना काम " तो दास मलूका के " सबके दाता राम " आकर अपने आराम-भक्त को अभयदान देकर आलस्य की गोद में सुलाकर अपने चिरनिद्रालीन रूप से आत्मा का साक्षात्कार करवा कर एकाकार करवा देते हैं. आलस्य मन की एक निःस्पृह, निष्काम, निर्लिप्त अवस्था है जो निंदा-स्तुति, जय-पराजय, लाभ-हानि, मान-अपमान जैसी सांसारिक श्रंखलाओं से परे एक उन्मुक्त भाव है जिसको नीरो जैसे स्थितिप्रज्ञ मुरलीधर ही समझ सकते हैं.

मुझे लगता है कि भौतिकी का सबसे सनातन सर्वमान्य ऊर्जा-संरक्षण का सिद्धांत किसी आरामवादी आलस्यप्रिय वैज्ञानिक ने ही खोजा होगा. जरा सोचिये कि यदि संसार के सभी देशों की सेनायें सर्वसम्मति से ऊर्जा संरक्षित करती हुई आराम-मूद्रा में समाधिस्थ होकर चिरनिद्रायोग में एकाग्रचित्त होकर ध्यानमग्न हो जायें तो विश्वशांति साकार रूप धरकर. " वसुधैव कुटुम्बकम् " का असाध्य परम लक्ष्य पा सकती हैं. ऊर्जा संरक्षण का अर्थ है रक्त में निहित ऊर्जा को संचित करके आलस्य को चिरसिंचित करते रहना, रक्त की एक भी बूँद को पसीना बनाकर व्यर्थ नहीं करना और येन, केन प्रकारेण ऊर्जा को शरीर में समेटकर, आलस्य से लपेटकर, आराम को हर पल एक नया आयाम देना. ऊर्जा का देह में ही संरक्षण करना भूमंडलीय तपन को रोककर धरती के प्रति मानव के कर्तव्य को भी पूरा करने में सहायक सिद्ध होगा, यह निर्विवाद सत्य है.

अब बेडा़ गर्क हो उस सनकी आइंस्टीन का जिसने ऊर्जा संरक्षण की शांतिप्रिय व्यवस्था को छिन्न-भिन्न करके पदार्थ को ऊर्जा में बदलकर सब कुछ गुड़ गोबर कर दिया. ना होता बाँस और ना ही बजती बाँसुरी. ना होता आइंस्टीन का सापेक्षता सिद्धांत और ना ही एटम बम हिरोशिमा और नागासाकी को विनाश की खाई में ढकेलता. यह आरामवादी, आलस्यजनित सनातन, ऊर्जासंरक्षणवादी आस्था के अनादर का ही शाप है कि संसार को आनंद से दूर होकर विनाश के हाथों चूर-चूर होना पडा़.

आराम एक अद्भुत अनुभूति है जिसका लगभग सभी सत्ताधीश पाँच साल तक निष्ठापूर्वक रसास्वादन करते रहते हैं. पाँच साल बाद एक चुनावी ब्रेक लेकर अपनी प्रजा को, निष्काम भाव से मतदान कर्म करते हुए फल को उनके लिए छोड़ने का उपदेश देकर, निराकर से साकार रूप में आकर
जनता को अभयदान देकर विजयरूपी पत्रं, पुष्पम् ग्रहण करके उनके शुभचिंतन की ध्यानावस्था में स्थिरचित्त होकर पुनः आराम-समाधि में लौट जाते हैं.

बापू के अनुयायी उनकी रामराज्य की कल्पना को आँख मूँदकर कुंभकर्ण मुद्रा में "आ रामराज्य " जपते-जपते "आराम राज्य" स्थापित करते हुए,
" आराम हराम है " को " आराम ही राम है " समझते हुए, योगियों के लिए भी दुर्लभ गति को प्राप्त हो गये. अब उनकी जगह आ धमके आज के रामवादी आरामवादी बनकर सब कुछ रामभरोसे छोड़कर आराममुद्रा में आत्ममुग्धता की अवस्था में पहुँचते जा रहे हैं. अब राम के इस देश में यदि आराम के लिए भी आम सहमति न बने तो इस देश की की एकता खतरे में पड़ सकती है. यह राष्रवादी चिंतन आलस्य की चेतना के साये में ही पल्लवित-पुष्पित हो सकता है.

आइये, हम सब कंधे से कंधा मिलाकर, थालियाँ और तालियाँ झनझनाकर, बत्तियाँ बुझा-जलाकर, इस आलस्य-चेतना से झिलमिलाकर
आरामयोग द्वारा आलस्यरस का रसपान करते हुए इस अदभुत भाव को अपना स्वभाव बना लें और इसके प्रभाव से आनंद के हर अभाव को दूर करते रहें.

और इस आलस्य द्वारा आयोजित आरामयज्ञ में पूर्णाहुति देते हुए एकस्वर में बोलें, " आलस्यो हि मनुष्याणां शरीरस्थो महासुखम् " और इस महारिपु समझे जाने वाले महासुख को आराम के साँचे में ढालकर आलस्य की परम अवस्था प्राप्त करें और विश्वमंगलकामना करते हुए आँख मूँदकर निद्रावस्था को लगभग छूते हुए, कुछ झपकियों से साक्षात्कार करते हुए
कुछ इस प्रकार ऊँघोच्चारण करें,

" सर्वे जनाः आरामसुखिनः भवंतु "

और " आलस्य देवो भव " को जीवन-मूल्य बनाकर परमशून्य अवस्था की ओर निद्रालीन होते रहें .

द्वारा : सुधीर अधीर

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