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निःशब्द - Mamta Gupta (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

निःशब्द

  • 265
  • 8 Min Read

*निःशब्द*

आज कलम नही चल रही है ...
हाथ कांप रहे है , रूह कांप रही है ...
यह वीभत्स घटना सुन कर आज ...
एक बेटी की आत्मा सवाल कर रही है ...

कहती है सहमी आवाज़ में अपनी माँ से ...
ये दुनिया बड़ी जालिम है माँ हम बेटियों के लिए ...
कभी नही लाना माँ इन हैवानों के बीच में ...
चाहे गला मेरा घोट देना तेरे ही कोख में ...

खुद को लड़की का रूप मिलने पर ...
दरिंदों से अपनी इज़्ज़त बचाने से ...
कन्या भ्रूण हत्या से डर नही लगता अब ...
डर लगता है इस धरती पर आने से ...

सुरक्षित नही इस दुनिया मे मासूम बेटियां ...
अब लड़की स्वरूप किसी को न बनाना ...
भगवान से यह प्रार्थना करने लगी हूँ ...
सृष्टि के रचयिता बन्द कर दे बेटियां बनाना ...

बेटियों पर सदा ही उंगलियां उठती नजर आई है ...
कहते है दरिंदगी को बेटियां खुद बढ़ावा देती आई है ...
किसी के किरदार को छोड़ कर बस कपड़ो से आका जाता है ,
इन्ही बातों को बस बलात्कार का कारण बताया जाता है ...

भगवान आपने इंसान बनाकर सायद भूल कर दी ...
क्योंकि इंसान ने अपनी सारी हदें पार कर दी ...
इंसानियत को भूलकर हैवान बन गया है ...
अपनी वासना की भूख मिटाने में अंधा हो गया है ...

बच्चियों पर अपनी मर्दानगी का जोश दिखाता है,,
नामर्द होने की पहचान खुद की खुद ही बताता है...

बताओ ना बेटियो के लिए कौनसा सख्त कानून बना है....
बस इंसाफ के नाम पर सदा प्रशासन का मुँह बन्द मिला है...

बस कुछ दिन मोमबत्ती जलाई जाएगी
फिर दिखावे के लिए सहानुभूति जताई जाएगी
फिर कल कोई और मनीषा, निर्भया, प्रियंका
दरिंदगी की शिकार हुई यह खबर आएगी।।
लेकिन नही मिलेगा तो बस हमे इंसाफ।

अब बस यही बेटियो की इच्छा है माँ इस धरती पर आने से पहले एक बार जरूर सोचना है,,

काली ,दुर्गा,या,चण्डिका बनकर ही जन्म लेना है, इंसान रूपी राक्षसों का अब हमें ही वध करना है।।

ममता गुप्ता
अलवर(राजस्थान)

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