लेखसमीक्षा
एक पाठकीय समीक्षा
'' पन्नी " (उपन्यास)
लेखिका : ज्योत्स्ना सिंह
प्रकाशक : शिवना प्रकाशन
सीहोर (मध्य प्रदेश)
अमेज़न पर भी उपलब्ध
" पन्नी " ज्योत्स्ना सिंह जी द्वारा रचित, उनका पहला उपन्यास है
" ज्योत्सना सिंह ", हिन्दी - लेखन के क्षेत्र में विभिन्न मन्चों पर काफ़ी लोकप्रिय हैं.
इसके पूर्व भी उनके द्वारा लिखित लघुकथा संग्रह " सारंगा " बहुत लोकप्रिय हुआ है.
उनकी कहानियां देश विदेश की अनेक पत्र - पत्रिकाओं तथा हमारे समाचारपत्रों में नियमित रुप से प्रकाशित होती रहती हैं.
कई टीवी और रेडियो चैनलों द्वारा भी उनकी रचनाओं का प्रसारण और लेखिका के साक्षात्कार का प्रसारण हो चुका है.
" पन्नी '' एक बहुत अच्छा और पठनीय उपन्यास है.. ..
इसके सभी पात्र बहुत सशक्त हैं..
ज्योत्स्ना सिंह जी के वर्णन अत्यंत जीवन्त और सजीव होते हैं..लेखन _शैली.. उत्कृष्ट किन्तु सरल है.
उपन्यास में '' लखनऊ मेल '' का ज़िक्र, रिफ्रेशमेंट रूम
का " ब्रेकफास्ट "लखनऊ रेलवे स्टेशन की बहुत सी पुरानी स्मृतियाँ ताज़ा कर गया ..! लखनऊ मेल अधिकतर समय से ही चलती थी..
इसके बाद लखनऊ से रायबरेली के एक गांव की टैक्सी यात्रा भी रोचक है.
वादविवाद प्रतियोगिताओं के अनेक मन्चों पर, नायिका और प्रदीप जी के तर्कपूर्ण विचारों की प्रस्तुति प्रभावपूर्ण है और आकर्षित करती है..
गांव में लक्ष्मी के विवाह का प्रसंग भी बहुत आकर्षित करता है , पहले के समय में, विवाह के आयोजन के पारंपरिक विधि विधानों, की यादें ताज़ा कर देता हैं..
गांव की युवती, अत्यंत कर्मठ '' सुरसतिया '' का व्यक्तित्व भी बहुत रोचक है.. उसका दुखद अन्त, मन को विषाद से भर देता है.
'प्रदीप जी ' को, वाराणसी के अत्यंत कटु अनुभव,एक तेजतर्रार पत्रकार और एक प्रखर आलोचक बना देते हैं..
नायिका की ग्रहसहायिका ' नाज़िया ' भी अपने कर्तव्यों को बख़ूबी निभाती है.. और अपनी मालकिन को ज़रा भी तकलीफ़ नहीं होने देती..
उपन्यास में खादी - भंडार का उल्लेख है.
'' खादी - भंडारों '' से पहले लोग खद्दर के कपड़े और ऊनी परिधान भी प्रायः खरीदा करते थे. वे अपेक्षाकृत सस्ते और अच्छे रहते थे..
खादीभंडार के कर्मचारी भी बड़े विनम्र और सादगी से रहने वाले होते थे. महात्मा गांधी के जन्मदिन, 2अक्टूबर से विशाल '' छूट '' प्रारम्भ हो जाती थी..
पालिथिन या पन्नी के सर्वत्र, धड़ल्ले से प्रयोग के दुष्परिणाम भी, उपन्यास में उल्लिखित हैं.. जो पर्यावरण के प्रति लेखिका की चिंता प्रदर्शित करता है
इस उपन्यास का '' गुनाहों का देवता "
'' चंदन" भी अन्ततः अपने छिन्न भिन्न जीवन को पुनः सुनियोजित करने के लिए प्रतिबद्ध हो जाता है..
राह भटक गया, लक्ष्मी का पति, महेन्द्र भी राजनीति में धोखा खा कर, अपना व्यवसाय पुनः प्रारंभ करता है.
उपन्यास का पाठन अत्यंत सुन्दर और सुखद अनुभूति देता है.
कमलेश वाजपेयी