कविताअतुकांत कविता
कविता : प्रेम
कहते हैं प्रेम करते हैं लेकिन
लव मैरिज कर झगड़ते हैं
जान लुटाकर प्रेम करते हैं
भाई साहब, जान लुटाकर
कभी प्रेम होता है क्या ?
प्रेम तो जीवन जी कर
ही होता है
हाँ , प्रेम , उस माँ का होता है
जो बच्चे को , जन्म देती है
अपनी जाँ से ,ज्यादा सुरक्षा देती है
हर आफत को , अपने सर लेती है
अौर हाँ, प्रेम का अर्थ , उस
युद्ध में जाने वाले जवान से
पूछना ? जो माँ के आँचल को
आँसूअों से, भर देता है
अौर माँ की आँखें, गर्व से
ऊँचा कर देता है
दूर क्यों जाते हो
प्रेम का निकट संबंध
पिता से होता है
जो अपने सारे सुख
दरकिनार कर, बच्चों के
भविष्य के लिए
धन जुटाता है
तिल-तिल मरता
यही कहता है
मेरे बच्चे , मेरे जैसे दु:ख
कभी न झेलें
भगवान उन्हें, सदा
सुखी रखे
प्रेम, आय लव यू कहकर
नही व्यक्त किया जा सकता
यह तो सहज , आँखों से
सदा आशीष बन रिसता है
अगर ऐसा होता तो
कब, कितनी बार
मात-पिता ने ,
आय लव यू कहा ?
कब दादा-दादी ने कहा
प्रेम , चेहरा -कपडे़ या हुलिया
देख कर नही होता
बल्कि प्रेम , अँधे, लँगडे,
कुरुप बच्चे से भी
माँ का उतना ही होता है
जितना सुंदर बच्चे से
पाँच -सितारा हॉटेल में
खाना खिलाने से
धनवान व्यक्ति के
संग बैठने से
या सहपाठी की
मीठी बातों से
प्रेम सिद्ध नही होता
बल्कि ये तो एक
छलाबा होता है
एक नाटक होता है
प्रेम तो शबरी के
झूठे बेरों में था
प्रेम तो केवट के
पांव पखारने में था
प्रेम तो अर्जुन को
गीता सुनाने में था
वैसे प्रेम करना तो सहज है
पर जो सच में करता है
वही निभा पाता है
जीवन की कठिन घड़ी में
वही काँधे पर बैठाता है
प्रेम कोई खेल नही
प्रेम कभी बिकता नही
प्रेम बदनाम नही करता
प्रेम आँसू नही देता
प्रेम दर्द नही देता
प्रेम मिटने नही देता
प्रेम रूकने नही देता
प्रेम टूटने नही देता
प्रेम बुझने नही देता
प्रेम बिछुड़ने नही देता
प्रेम अकेला नही छोड़ता
प्रेम आत्महत्या नही करता
प्रेम खून नही करता
प्रेम धर्म परिवर्तन नही कराता
प्रेम तो वो होता है
जो जरा-सा दर्द
होने पर
अनायास ही हमारी
आँखों से आँसू बन
छलक जाता है,
अौर दूसरे के मन का
दर्द हर लेता है
प्रेम तो जीवन पलट देता है
पतझड़ में फूल खिला देता है
प्रेम को जानना चाहोगे तो
प्रेम वो होता है
जो बबूल के पेड़ से भी
धरती का होता है
प्रेम वो होता है
जो अंधेरे को
सूर्य बन चीर देता है
प्रेम वो होता है जो
अॉपरेशन थियेटर से
निकलने वाले डॉक्टर
के शब्द सुन ने को
आतुर होता है
प्रेम वो होता है जो
श्मशान की राख में
अपने को ढूँढता है
प्रेम वो होता है
जो बरसते बादलों से
करोड़ों प्यासे
जीव-जंतुअों को होता है
प्रेम वो होता है जो
भगवान कृष्ण से
जन-जन का होता है
जिसके कारण ऊपर
आसमाँ अौर नीचे
धरती टिकी है
या ये कहूँ कि-प्रेम
हनुमानजी की रामभक्ति
में होता है
बच्चों की मुस्कुराहट में
कलियों की महक में
बारिश की बूँदों में
वृद्धों के आशीष में
परिवार के संबंधों में
अौर अपने ह्रदय से
निकले मीठे शब्दों में
प्रेम होता है.
डॉ. विनोद नायक
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