कविताअतुकांत कविता
नारी स्वतंत्रता...
ना बनाओ दीवार #बेड़ियों की.....
ना जकड़ो इन्हें झूठी #परंपराओं में।
ना एहसास दिलाओ कि वह है एक #नारी.....
ना करो झूठे वादे!!! नारी #स्वतंत्रता की।
ना करो उनके सपनों को #चकनाचूर.....
वह बराबर का #दर्जा रखती है इस ज़मीन पर।
तो क्यों उनकी #आबरू से खेला जाता है.....
वह कोई #वस्तु नहीं है कि जब चाहा उससे खेला और तोड़ दिया।
उसे भी अपने अनुसार #जीने का बराबर का हक है.....
तुम कौन होते हो? उसे उसकी #औकात दिखाने वाले।
तुम्हारा तो #वजूद!!! ही इनकी देन है.....
नहीं तो तुम्हारा #अस्तित्व ही नहीं होता।
"यह #दुनियाँ ही नहीं होती....."
फिर किसे जकड़ते अपनी #ताकत से.....
अगर #बगावत कर दे हर नारी।
कर दे खुद को #बाँझ.....
तो कहाँ होगा? तुम्हारा #अस्तित्व।
वह नहीं तुम्हारे #खेलने की चीज.....
वह तुम्हें #बनाती है! तुम क्या बर्बाद करोगे? उसे।
@champa यादव
7/10/20