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हाथों में आ जाती है कलम - Bhawna Sagar Batra (Sahitya Arpan)

कविताअन्य

हाथों में आ जाती है कलम

  • 267
  • 4 Min Read

जब महसूस होता है अकेलापन ,
जब होते है कई सवाल और
अनेकों ख्याल ज़हन में ।
दर्द जब हद से बढ़ जाता है ,
मजबूर होती है ज़ुबां, खुलते नहीं लब,
शिकायत करने को किसी से ,
मन हो जाता है परेशान ,

वो खुद ब खुद बुलाती है मुझे अपने पास,
और हाथों में आ जाती है कलम ।

लिखवा कर मुझसे मेरे जज़्बात ,
करके ढेरों बातें संग मेरे ,
बन जाती है सखी मेरी और
मुझे बना देती है कवि ।

मेरे आँसुओं से फैली स्याही कलम की,
बताती है कि कोशिश की है उसने मेरे
आँसु पोंछने की,मेरे दर्द को शब्दों में समेटने की ।
फिर समेट कर सारा दर्द ,हर तकलीफ
कर देती है बंद उन बुरी यादों को डायरी के पन्नों पर ।

और कहती है मुझसे सखी हूँ तेरी,
आ जाती हूँ तेरे पास ।
बन जाती है सखी मेरी और
मुझे बना देती है कवि ।
और हाथों में आ जाती है कलम ।

©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद ,हरियाणा

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