कविताअन्य
जब महसूस होता है अकेलापन ,
जब होते है कई सवाल और
अनेकों ख्याल ज़हन में ।
दर्द जब हद से बढ़ जाता है ,
मजबूर होती है ज़ुबां, खुलते नहीं लब,
शिकायत करने को किसी से ,
मन हो जाता है परेशान ,
वो खुद ब खुद बुलाती है मुझे अपने पास,
और हाथों में आ जाती है कलम ।
लिखवा कर मुझसे मेरे जज़्बात ,
करके ढेरों बातें संग मेरे ,
बन जाती है सखी मेरी और
मुझे बना देती है कवि ।
मेरे आँसुओं से फैली स्याही कलम की,
बताती है कि कोशिश की है उसने मेरे
आँसु पोंछने की,मेरे दर्द को शब्दों में समेटने की ।
फिर समेट कर सारा दर्द ,हर तकलीफ
कर देती है बंद उन बुरी यादों को डायरी के पन्नों पर ।
और कहती है मुझसे सखी हूँ तेरी,
आ जाती हूँ तेरे पास ।
बन जाती है सखी मेरी और
मुझे बना देती है कवि ।
और हाथों में आ जाती है कलम ।
©भावना सागर बत्रा
फरीदाबाद ,हरियाणा