कविताअतुकांत कविता
साप्ताहिक प्रतियोगिता
विषय- धोखा
विधा -पद्द
शीर्षक: कभी भी दिल न दुखाना
धोखा देने वाला स्वयं को
समझता है बहुत होशियार ,
पर भूल जाता है खुद चला रहा
अपने प्रति लोगों के विश्वास पर कटार ...
एक बार ऊंची छलांग लगा लोगे
कर के किसी के भरोसे पर वार ,
पर वापसी के लिए फिर
जगह कैसे करोगे तैयार ...
वो बेवकूफ़ नहीं सहृदय थे
जिसने तुमपे किया ऐतबार ,
छल कर पा नहीं सकोगे उनसे
कभी भी पहले जैसा प्यार....
कभी भी दिल न दुखाना उनका
जिन्होंने जोड़े हो तुमसे दिल के तार ,
क्योंकि सूख ही जाते हैं विश्वास के वो फूल,
तोड़कर चाहे रंग भरने की कोशिश कर लो हज़ार...
कंचन मिश्रा की कलम से ✍️✍️
स्वरचित
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