कविताअन्य
ये नहरें जानलेवा हैं।
लोग कोसते हैं इनको।
कहते हैं लोग आत्महत्या
इसी में कूदकर करते हैं।
पर उन्हें क्या पता
ये नहर बोझ उठा रही है।
उन कायरो का जो
खुद पर भरोसा नही रखते।
नहरें तो पावन थी है और रहेंगी।
बस एक दाग मानव ने लगा दिया।
दम घोट दिया है उसका
कचरा फैलाकर कर्मों का।
आखिर बचा क्या है?
एक प्रश्न चिन्ह उस अस्तित्व पर
जिसे तुम कहीं भी
बडी आसानी से लगा देते हो।
याद रखना नहर तुमको नही।
तुम नहर को मार रहे हो।
धीरे - धीरे एक दिन
रूठ जाएगी तुम सबसे ये नहर। - नेहा शर्मा