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मैच्यरिटी - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कहानीउपन्यास

मैच्यरिटी

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मैच्युरिटी
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भाग (8)
सुजल राय पढ़ने लिखने में तो इतने तेज न थे ,पर उनका सपना बड़ा था | वह दुनियाँ के अमीरों की सूची में अपना नाम दर्ज कराने का शौक रखते थे | उन्होंने कई नौकरियों के लिए परीक्षाएँ दी ,पर सफलता नहीं मिली | और नौकरी से वे अपना सपना पूरा भी नहीं कर सकते थे | अंत में उन्होंने व्यापार करने की ठानी | व्यापार भी करते तो क्या उसमें भी पूँजी की आवश्यकता थी जो उनके पास नहीं थी | देवेन्दु राय का वेतन घर के खर्चे में ही निकल जाता था | कुछ जमापूँजी थी नहीं | और छोटे मोटे व्यापार से सुजल राय के सपने उड़ान भर पाने में असमर्थ पा रहे थे | खैर उन्होंने अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए साबुन और ऩमकीन जैसे छोटे मोटे सामान घूम घूम कर बेचने लगे |
इसी दरम्यान उनका परिचय कुछ दुकानदारों से हो गया ,जिन्हें वे सामान पहुँचाया करते थे | एक दिन इन्हें काम में देर हो गयी | इन्होंने देखा कि एक आदमी आया और दुकानदार से सौ रुपये ले गया | इन्होंने पूछा कि ये किस चीज के पैसे ले गया | तब दुकानदार ने बतलाया कि ये एक कंपनी में मेरे पैसे जमा करता है और वह कंपनी एक वर्ष बाद कुछ ब्याज सहित एकमुश्त पैसे लौटा देता है | जिसे मैं व्यापार में लगाकर अपने व्यापार बढ़ा लेता हूँ | वह व्यापार के लिए पूँजी की तरह हो जाता है | वरना ऐसे पैसे इकट्ठे कहाँ होते हैं |
सुजल राय ने सोचा कि मैं प्रतिदिन इनसे मिलता ही हूँ | मैं ही यह काम क्यों न शुरू कर दूँ | उन्होंने तीन चार दोस्तों को लेकर इस काम की शुरूआत करने की सोची | शुरू में तो दुकानदार हिचकिचाए ,पर कुछ दुकानदार जो इनके करीब आ गए थे ,और इनके दोस्त जैसे हो गए थे उन्हें राजी करने में ये सफल हो गए | धीरे धीरे एक वर्ष बीत गया | और इन्होंने जब कुछ दुकानदारों को उससे थोड़ा ज्यादा ब्याज के साथ रकम लौटायी तो दुकानदारों के बीच इनकी साख जमने लगी | अब ये दुकानदारों के इकट्ठे पैसे से ज्यादा माल खरीद कर दुकानों पर पहुँचाने लगे जिससे इनका भी लाभ बढ़ने लगा | अब इन्होंने ब्याज के साथ साथ कुछ ड्रा में कुछ इनाम भी रखने लगे | धीरे धीरे इनके ग्राहकों की संख्या बढ़ने लगी | अब ये ड्रा का इनाम घोषित करने के लिए स्थानीय नेताओं को भी आमंत्रित करने लगे | जिससे धीरे धीरे इनकी राजनीतिक पहचान भी बनने लगी |
कई दोस्त समय समय पर कुछ पैसे लेकर निकलते भी गए जिससे इन्हें कुछ हानि भी हुई और व्यापार में उतार भी आया ,पर इन्होंने हार नहीं मानी | इन्होंने कुछ ऐसे बेरोजगार साथियों को चुना जो काम के लिए ठोकरें खा रहे थे ,पर उन्हें कोई काम नहीं मिल रहा था | इनका यह काम उस समय लोग चिट फंड़ के रूप में देखते थे | पर पैसा समय पर मिल जाने के कारण किसी को कोई शिकायत न थी | पर सरकारी मुलाजिमों का डर सदा बना रहता था | क्योंकि इनके पास इस काम को करने का कोई लाइसेंस नहीं था |
तब इन्होंने सोचा क्यों न इसके लिए लाइसेंस ले लिया जाए और वैध तरीके से इस काम को किया जाए | जिससे कहीं भी इस काम को करने में परेशानी न हो | लाइसेन्स प्राप्त करना इतना आसान न था | लेकिन इन्होंने सोचा क्यों न स्थानीय नेताओं से मदद ली जाए | आखिर एक राजनेता ने इनकी मदद करने का आश्वासन दिया और सम्बन्धित अधिकारी को चिट्ठी लिखकर इन्हें दे दी | अब ये उस चिट्ठी को लेकर सरकारी कर्मचारी के पास गए जहाँ इन्हें लोगों से पैसे जमा लेने के लिए अधिकृत रूप से अधिकार मिल गए | यानि इन्हें लाइसेंस मिल गया |
कंपनी का नाम रखा इन्होंने हेल्प इंडिया | जिसे भारतीय रिजर्व बैंक के मार्गदर्शन में सारे भारत में काम करने की अनुमति मिल गयी | फिर क्या था इनका व्यापार दिन दुगुना रात चौगुना बढ़ने लगा | कंपनी के नाम के साथ इनका नाम भी ऊँचाई छूने लगा |
इसी दरम्यान इन्हें एक लड़की जो महाविद्यालय में पढ़ायी में सदैव उच्च स्थान प्राप्त करती थी उससे प्यार सा हो गया | पहले तो इनकी हिम्मत न होती थी उसके पास अपना प्रणय निवेदन करने का | पर इधर व्यापार में सफलता और बढ़ते रूतवे ने इन्हें प्रणय निवेदन का प्रस्ताव ले जाने में जो संकोच था उसे लगभग खत्म कर दिया था | और संकोच ने अब आत्मविश्वास का रूप धारण कर लिया था | सुश्मिता राय को जब इन्होंने पहली बार अपनी हसरतों से अवगत कराया तो वह घबरा सी गयी पर इनकी ख्याति सुनकर इनकार भी न कर सकी | फिर इन्होंने यह प्रस्ताव सुश्मिता के माता पिता के सामने रखा जो विवाह के लिए राजी हो गए |

कृष्ण तवक्या सिंह
05.10.2020

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दादी की परी
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