कविताअतुकांत कविता
**✍️ शीर्षक- बलिदानी का सर*
शीर्षक- बलिदानी का सर
अठारह की उम्र थी,
साहस, होंसला, उम्मीदें थी,
घर क्या एक झोंपड़ी थी,
किसी महल से कम नहीं थी।
सपना उसका था,
बुढ़ा होउं फिर भी जवान कहलाऊं।
गांव का एक गरीब बालक फोजी कहलाया,
चंद कुत्तो ने जब घायल को घेरा था।
सर काट लें गये चुहे,
तब खुन सब का खोला था,
जब पढ़ा था अखबारों में,
गद्दारो ने सर पर कटवाएं कुतो के दरबारो में।
मां से पूछा किसीने,
क्या करेंगे कुत्ते सर का?
मां का जवाब-
दिखा देंगे उन चुहों को ,
होता हैं केसा बलिदानी का हर।
यही है बलिदान का सर।
*गुलश़न*
आंबा
सुवासरा
मंदसौर
मध्यप्रदेश
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