कवितालयबद्ध कविता
ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...
ये जो तुम आधुनिक बनते जा रहे हो
याद रखना अपनी ही संस्कृति भुला रहे हो...
ये जो तुम मन से मैले हो रहे हो
याद रखना अपनों से रिश्ते नाता तोड़ रहे हो...
ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...
ये जो तुम लक्ष्य विमुख हो रहे हो
याद रखना पश्चाताप की अग्नि पाल रहे हो...
ये जो तुम प्रताप भामाशाह भगतसिंह को भूल रहे हो
याद रखना कायरों से नाता जोड़ रहे हो...
ये जो तुम कायरों से नाता जोड़ रहे हो
याद रखना गुलामी की जंजीरे बांध रहे हो...
ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...