Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
पथ प्रदर्शक - Rajen Balan (Sahitya Arpan)

कवितालयबद्ध कविता

पथ प्रदर्शक

  • 26
  • 3 Min Read

ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...
ये जो तुम आधुनिक बनते जा रहे हो
याद रखना अपनी ही संस्कृति भुला रहे हो...
ये जो तुम मन से मैले हो रहे हो
याद रखना अपनों से रिश्ते नाता तोड़ रहे हो...
ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...
ये जो तुम लक्ष्य विमुख हो रहे हो
याद रखना पश्चाताप की अग्नि पाल रहे हो...
ये जो तुम प्रताप भामाशाह भगतसिंह को भूल रहे हो
याद रखना कायरों से नाता जोड़ रहे हो...
ये जो तुम कायरों से नाता जोड़ रहे हो
याद रखना गुलामी की जंजीरे बांध रहे हो...
ये जो तुम पथ भ्रष्ट हुए जा रहे हो
याद रखना खुद से ही दूर जा रहे हो...

logo.jpeg
user-image
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg