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काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते - Krishna Tawakya Singh (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

काश ! मृत्यु से पहले जाग जाते

  • 137
  • 9 Min Read

काश! मृत्यु से पहले जाग जाते
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उफ् ! ये बलात्कार घटनाएँ
अत्याचार की कहानियाँ
खूब छपती है अखबारों में
जब कोई मारा जाता है
तब हम जिंदा हो जाते हैं
विरोध को स्वर देने के लिए
कुछ लिखकर ,कुछ गाकर
अपनी संवेदना जताने के लिए
अचानक हमारी संवेदना उमड़ आती है
एक तूफान की तरह |
पर जब कोई किसी के सीने पर सवार होता है
अपनी मुट्ठी में उसकी गर्दन पकड़ लेता है
और वह जिंदगी बचाने की गुहार करता है
तब हम बहरे हो जाते हैं
न जाने कहाँ चली जाती है
हमारी आवाज
हमारी लेखनी का अंदाज |
शायद उन जालिमों के सीने में पनपती
कामनाओं की खबर हमें नहीं हो पाती
जबकि वे अपने कुकृत्यों से
अपनी कामनाओं को बताने में
कोई कोर कसर नहीं छोड़ते |
कहाँ नहीं होता बलात्कार
कार्यालयों में ,शिवासयों में
सड़क पर ,समाज में
खेतों में ,घरों में
आलीशान महलों में ,
जहाँ नियम बनाए जाते हैं उन दफ्तरों में
शरीर से नहीं भावनाओं से बलात्कार होता है
कुचले जाते हैं हरपल जमीर
तोड़ी जाती है रीढ़
तुम्हें आत्मा पर होते ये अत्याचार नहीं दिखते
शुरूआत नहीं तुम अंत देखते हो
तुम्हारी हर मुहिम किसी को जीवन देने की नहीं
उसके मरने पर शुरू होती है |
जानेवाला तो चला जाता है
उसकी चिता पर चिंता जताकर
अपने जीवन को हरा भरा करने की तुम्हारी मुहिम
तुम्हें भी शिखर पर पहुँचा देती है
सीढ़ी बनकर तुम्हारी छत पर चढ़ा देती है
जहाँ से तुम आवाम को संबोधित कर सको
और फिर वही सब करने के लायक तुम्हे बना देती है
जिसका अबतक तुम विरोध करते आए हो |
चलता रहेगा यही सब
किसी न किसी रूप में ,
जब तक जमीर जलाए जाएँगे खुली धूप में |
कानून जितने भी कड़े बनते रहेंगे
वे और बड़े बनते रहेंगे |
वे करेंगे फैसले ,हम मुँह लटकाए खड़े रहेंगे |
न्याय की आस लिए |
हन मृत्यु पर शोक मनाते रहेंगे |
वे हमारे जीने पर अट्ठहास करते रहेंगे |
काश ! हम उलकी मृत्यु से पहले जाग जाते
रोक सकते हम उन्हें पहले ही
कि वे कदम न उठा पाते |

कृष्ण तवक्या सिंह
30.09.2020

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