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कवितानज़्म
औरों से ही नहीं अपने आप से भी रहता है ये नाराज़ आदमी किस क़दर तबियत से अपनी रहता है आज नासाज़ आदमी आदमी में ढूंढते हो जिन्दादिल और एक खुशमिज़ाज आदमी आदमी में कबका मरगया आदमी जिंदा कहाँ है आज आदमी -बशर