कवितालयबद्ध कविता
● स्वयं को जानो ●
स्वज्ञान से अनभिज्ञ होकर
सत्य की खोज असार है
अर्थशून्य मीमांसा त्यक्त करो
यही परम क्रांति की पुकार है
विद्यमान अवस्थान से खुलता
अगाध पात्रता का द्वार है
सृष्टि को स्वीकृत नहीं स्थिरता
गमन ही एकमात्र आधार है
अटल संकल्पना से उतरो ध्यान में
यहीं मिलता असंग चेतन सार है
ब्रह्म को थामो, शून्य को खोजो
यहीं झंकृत होती वीणा की तार है
© अनुजीत इकबाल