कविताअतुकांत कविता
जागरण करती है वो जोगन
गहन निद्रा में भी
निद्रागस्त होना भी चाहे तो
सजगता उसको सोने नहीं देती
हरीतिमा त्यक्त कर
लतामंडल का परित्याग कर
गमन करती है वो
धवालगिरि की ओर
देह के गिर्द है काला तमस
मानों, प्राणवायु प्रतिक्षण
आग्नेय मंत्रों का उच्चारण
करती हो
अटल मृत्यु की
अभ्यर्थना करती हो
बैठी है जोगन चेतना के प्रकाश में
लेकिन, विचार बाधाएं हैं
जो प्रकाश को
अमूर्त और निभृत की जमीन तक
पहुंचने नहीं देते
लेकिन, जोगन निराश नहीं है
जानती है वो कि
प्रकृति निर्वात रखना नहीं जानती
और, पात्रता आते ही
वो उसको पूर्ण कर देगी
अनुजीत इकबाल