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आदमी अकेला है - Dr. N. R. Kaswan (Sahitya Arpan)

कवितानज़्म

आदमी अकेला है

  • 50
  • 2 Min Read

भीड़ है हुजूम है मेला है
आदमी फिरभी अकेला है!
कहनेको हमारी है ज़िन्दगी
पर किसी औरका खेला है!
नसीब संवारने की दौड़ में
वक़्तने आदमी को पेला है!
राब्तोंके वहमने इन्सान को
बहते रेले में पीछे धकेला है!
वह कल भी अकेला था
आदमी आज भी अकेला है!
@"बशर"

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तन्हा हैं 'बशर' हम अकेले
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ये ज़िन्दगी के रेले
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यादाश्त भी तो जाती नहीं हमारी
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प्रपोजल
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वो चांद आज आना
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