Help Videos
About Us
Terms and Condition
Privacy Policy
दादाजी - Bindesh kumar Jha (Sahitya Arpan)

कविताअतुकांत कविता

दादाजी

  • 33
  • 3 Min Read

दादाजी

चांदी से भी सफेद बाल
असमतल मिट्टी से गाल
मुस्कान बता रही है,
थकी हुई गाथा सुन रही है
फीके पड़े दुनिया भर के इत्र
दादाजी जो हैं मेरे मित्र
स्नातक पास होते है
नर्सरी में मेरे साथ बैठा हे
बातों में तर्क नहीं है
यह बात मुझे मालूम नहीं है
अब तर्क समझ आ रहा है
लेकिन दादाजी नहीं है
कॉलेज में बैठा रोने लगता हूं
आंसू पूछने दादाजी को खोजने लगता हूं।
त्तर्कहीन बातें ही सुना दो
कोई दादरी से ही मिला दो

बिंदेश कुमार झा

IMG_20240404_202009_958_1716722164.jpg
user-image
वो चांद आज आना
IMG-20190417-WA0013jpg.0_1604581102.jpg
तन्हाई
logo.jpeg
प्रपोजल
image-20150525-32548-gh8cjz_1599421114.jpg
माँ
IMG_20201102_190343_1604679424.jpg